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116 : विवेकविलास
यदि मणिबन्ध पर जौ की पंक्तियाँ हों तो ऐसा व्यक्ति राज्य में मन्त्री होता है . या बड़ा धनाढ्य अथवा पण्डित होता है और एक ही पंक्ति हो तो लोक समुदाय में श्रेष्ठ, पूजित और बड़ा धनवान होता है। कररेखालक्षणं- .
. सूक्ष्माः स्निग्धाश्च गम्भीराः प्रलम्बा मधुपिङ्गलाः। अव्यावृत्तागतच्छेदाः करे रेखाः शुभा नृणाम्॥49॥
मनुष्य के हाथ की रेखाएँ पतली, स्निग्ध (स्नेहयुक्त), गहरी, लम्बी, मधु जैसे भूरे वर्ण की अव्यावृत्ता (पीछे की ओर टेढ़ी) नहीं हुई हों और छिद्र रहित हों तो शुभ जाननी चाहिए।
त्यागाय शोणगम्भीराः सुखाय मधुपिङ्गलाः। सूक्ष्माः श्रियै भवेयुस्ताः सौभाग्याय समूलकाः॥50॥
मनुष्य के कर रेखा लाल, गहरी हों तो उदारता देती है। मधु.जैसे भूरे वर्ण की हों तो सुखद, पतली हो तो लक्ष्मीदायक और मूल से अन्त तक छिद्र रहित हों तो सौभाग्य देती है।
छिन्नाः सपल्लवा रूक्षा विषमाः स्थानकच्युताः। विवर्णाः स्फुटिताः कृष्णा नीलास्तन्व्यश्च नोत्तमाः॥51॥
व्यक्ति के हाथ में रेखा छिद्री हुई, शाखा वाली, सूखी, आड़ी-औंधी, स्थानभ्रष्ट, विवर्ण, फूटी हुई, काली, नीलवर्ण की और पतली हो तो उत्तम नहीं होती है।
क्लेशं सपल्लवा रेखा छिन्ना जीवितसंशयम्। कदन्नं परुषा द्रव्य विनाशं विषमार्पयेत्॥52॥
सदा शाखा वाली रेखा क्लेश देती है। छिद्री हुई जीवन का संशय बताती है। कठोर रेखा खराब अन्नप्रद और आड़ी-तिरछी रेखा विनाश करती है।
मणिपबन्धात् पितुर्लेखा करभात विभवायुषोः। द्वे लेखे यान्ति तिस्रोऽपि तर्जन्यङ्गष्ठकान्तरम्॥ 53॥
हाथ में मणिबन्ध से पिता की रेखा निकलती है और करभ (कनिष्ठा के नीचे के भाग) से धन और आयुष्य की दो रेखाएँ निकलती है। तीनों रेखाएँ तर्जनी और अंगुष्ठ इन दोनों के बीच में जाती हैं।
येषां रेखा इमास्तिस्रं सम्पूर्णा दोषवर्जिताः।... तेषां गोत्रधनायूंषि सम्पूर्णान्यन्यथा न तु॥ 54॥
जिसके हाथ की उपर्युक्त तीनों रेखाएँ सम्पूर्ण और निर्दोष हों, उसका कुल, * यहाँ से कई श्लोकों को वीरमित्रोदयकार मित्र मिश्र ने 'लक्षणप्रकाश' में उद्धृत किया है।