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________________ अथ धर्मकृत्याहारव्याधिघटिकादीनां वर्णनं नाम तृतीयोल्लास : : 99 लब्धाङ्के घटीसङ्ख्यां विजानीयाद्बुधः सदा । पूर्वाह्णे गतकालस्य शेषस्य त्वपराह्णके ॥ 68 ॥ (चतुर्भिः कलापम् ) मेषादि राशियों के ध्रुवाङ्क के अनुसार घटिकानयन की विधि इस प्रकार है। मेष से क्रमश: सूर्य की बारह राशियों के 144, 130, 115, 120, 115, 130, 144, 160, 172, 180, 172 और 160 - ये ध्रुवाङ्क जानने चाहिए। सूर्य को दाहिनी ओर रखते हुए अपनी छाया नापनी चाहिए। छाया का जितना प्रमाण आया हो, उस संख्या में सात बढ़ाएँ और उस अङ्क से जिस राशि का सूर्य हो उस राशि के ध्रुवाङ्क को भाग देना । जो संख्या लब्ध हो, वह घड़ी होगी । मध्याह्न हो, वहाँ तक गत काल की घटी संख्या जाननी चाहिए और मध्याह्न के बाद शेष रहे दिन की घटी संख्या जाननी चाहिए। आहारकाले विशेषमाह - ― मित्रोदासीनविद्वेषि मयेऽमुत्र जगत्त्रये । भवत्यभ्यवहार्येषु विषाशेषोऽपि कर्हिचित् ॥ 69 ॥ इस जगत में तीन प्रकार के लोग हैं- मित्र, उदासीन और शत्रु । आहारकाल के अवसर पर इस प्रकार के व्यक्तियों का ध्यान रखना चाहिए। ध्यान नहीं रखने पर विषादि के प्रयोग होने की सम्भावना रहती है। धीमन्तः स्वहिताः सम्यगमीभिर्लक्षणैः स्फुटम् । प्रयुक्तमरिभिर्गुप्तं विषं जानन्ति तद्यथा ॥ 70 ॥ अपनी हितैच्छा रखने वाले बुद्धिमान् लोग शत्रु द्वारा किसी आहार योग्य वस्तु में मिलाए गए विष के लक्षणों को जान सकते हैं। इसकी विधि आगे दी जा रही हैस्वराक्षार्थे खाद्यान्ने विषलक्षणं * ――――― अविक्लेद्यं भवेदन्नं पच्यमानं विषान्वितम् । चिराच्च पच्यते सद्यः पक्कं पर्युषितोपमम् ॥ 71 ॥ यह ध्यान में रखना चाहिए कि विषयुक्त अन्न पकाते समय भिगोया हुआ ही नहीं रहता है । पकते हुए बहुत समय लगता है और पकाया भी जाए तो शीघ्र बासी जैसा भी हो जाता है। 1 स्तब्धमूष्पविनिर्मुक्तं पिच्छिलं चन्द्रिकान्वितम् । वर्णगन्धरसान्यत्व दूषितं च प्रजायते ॥ 72 ॥ प्रसूरि कृत त्रैलोक्यज्योतिषशास्त्र में सिंह, धनु व कुम्भ राशियों के ध्रुवाङ्क 90, कर्क के 121 और शेष राशियों के ध्रुवाङ्क क्रमशः 105 -105 कहे गए हैं जो मिलाकर 1231 होते हैंसिंहधनुर्घटा सर्वे नवतिः संख्यका मताः । शतसंख्या भवेत् कर्कस्त्वेकविंशतिमिश्रितः ॥ पञ्चोत्तरशतं शेषा मेषादय उदाहृताः । राशीनां द्वादशशतोन्येक त्रिंशच्च पिण्डकः ॥ (त्रैलोक्यज्योतिष में चूड़ामणिद्वारेणार्घकाण्डे 134-135)
SR No.022242
Book TitleVivek Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna
PublisherAaryavart Sanskruti Samsthan
Publication Year2014
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size22 MB
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