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________________ व्याख्या- स्फुटाथैव। नवरं त्रिंशन्महामोहबन्धस्थानानि अतिसङ्क्लिष्टपरिणामेन जन्तुघातकत्वादीनि। यदागमः - 'वारिमझेऽवगाहित्ता, तसे पाणे विहिंसइ १। छाएइ मुहं हत्थेणं, अंतोनायं गलेरवं २॥१॥ सीसावेढेण वेढित्ता, संकिलेसेण मारइ ३। सीसम्मि जे य आरंतु, दुहमारेण हिंसइ ४॥२॥ बहुजणस्स नेयारं, दीवं ताणं च पाणिणं ५। साहारणे गिलाणंमि, पहुकिच्चं न कुव्वइ ६॥३॥ साहूण धम्मकम्माओ, जो भंसेइ उवट्ठियं ७। नेयाउयस्स मग्गस्स, अवगारंमि वदृइ ८॥४॥ जिणाणं णंतनाणीणं, अवण्णं जे पभासइ ९। आयरिय उवज्झाए, खिंसई मंदबुद्धिए १०॥५॥ तेसिमेव य नाणीणं, सम्मं नो पडितप्पइ ११। पुणो पुणो अहिगरणं, उप्पाए तित्थभेयए १२॥६॥ जाणं आहम्मिए जोए, पउंजइ पुणो पुणो १३। कामे वमित्ता पत्थेइ, इहंमि भविए इय १४॥७॥ अभिक्खणं अबहुस्सुत्तं, जे भासंति बहुस्सुए १५। तह य अतवस्सी य, जे तवस्सित्तिऽहं वए १६॥८॥ जायतेएण बहुजणं, अन्तोधूमेण हिंसई १७। अकिच्चमप्पणा काउं, कयमेएण भासइ १८॥९॥ नियंडुवहिपणिहीए, पलिउंचे साइजोगजुत्ते य १९। वेइ सव्वं मुसं वयसि, अज्झीणं झंज्झए सया २०॥१०॥ अद्धाणंमि पवेसित्ता, जो धणं हरइ पाणिणं २१। वीसंभित्ता उवाएणं, दारे तस्सेव लुप्पइ २२॥११॥ १. मायाविशेषा एते। २. अपलपन्नालोचयति। ३. उत्तमे वस्तुन्यधमस्य योजनं सातियोगः। ४. अविच्छेदेन क्लिश्नाति सदा। ५. विम्रभ्य। त्रिंशन्महामोहबन्धस्थानानि ...२३१...
SR No.022237
Book TitleGurugunshat Trinshtshatrinshika Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandrasuri
PublisherSanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
Publication Year2014
Total Pages258
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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