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दुर्लभं प्राप्य मानुष्यं विधेयं हितमात्मनः । करोत्य कांड एवेह मृत्युः सर्व न किंचन ॥ सत्ये तस्मिन्न सारासु संपत्स्वविहिता ग्रहः । पर्यन्त दारुणा सूच्चैर्धर्मः कार्यो महात्मभिः ॥
अर्थ दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्त करके आत्मा का हित करना चाहिए; कारण कि मृत्यु अकस्मात आकर के सब कुछ नष्ट कर देती है। __ऐसी मृत्यु से प्रसार और परिणाम से दारुण भय देने वाली सम्पत्ति में जो मोह नहीं धरता है वैसे महात्मा को उच्च प्रकार से धर्म करना चाहिए ।
धर्मबिंदु-हरिभद्रसूरिकृत