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यतिशिक्षा
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और फिर भी वैसे काम करता जाता है । ऐसे सावद्य काम करके तू झूठ बोलने वाला होने से प्रभु को भी ठगता है और इस पाप के भार से भारी बने हुए तेरे लिए तो नरक निश्चित है ही ऐसा मैं सोचता हूं ॥ ११ ॥ वसंततिलका
विवेचन- श्रावक या श्राविका भी दिन मैं जब सामायिक करते हैं तब करेमिभंते का पाठ बोलकर निश्चित समय के लिए पापकारी काम से दूर रहने की प्रतिज्ञा करते हैं जब कि साधु या साध्वी, व्रत अंगीकार करते ही बाकी रहे हुए पूरे जीवन के लिए वैसी प्रतिज्ञा लेते हैं उस सूत्र को करे - मिभंते कहते हैं । सूत्र है : – “करेमिभंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामी जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं" आदि || श्रावक श्राविका की प्रतिज्ञा में "जावनियमं " होता है जब कि साधु साध्वी की प्रतिज्ञा में " जावज्जीवाए" शब्द होता है । साधु साध्वी को अपनी इस प्रतिज्ञा का स्मरण दिन रात में मिलाकर नौ बार करना पड़ता है कि मैं पापकारी ( सावद्य) कार्य मन, वचन और काय से नहीं करूंगा, न कराऊंगा आदि || इस प्रतिज्ञा में बंधे होते हुए भी है साधु-यति ! जब तू पाप करता है तब तो झूठ भी बोलता है और झूठी प्रतिज्ञा लेकर भगवान को भी ठगता है । अतः तेरे लिए वैसी दशा में नरक गति निश्चित है ।
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यति यदि साव का आचरण करता है उसमें ठगाई का दोष वेषोपदेशाद्य पधिप्रतारिता, ददत्यभीष्टानृजवोऽधुना जनाः । भुंक्षे च शेषे च सुखं विचेष्टसे, भवांतरे ज्ञास्यसि तत्फलं पुनः १२