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धर्मशुद्धि
२५३ (३) भाव शुद्धि और उपयोग-प्रत्येक धार्मिक क्रिया में इन दोनों की परम आवश्यकता है अतः ध्यान रखना चाहिए।
... सुज्ञ मानवो ! लोकरंजन या यश कीर्ति के लिए धर्म न करते हुए स्वात्म दशा का भान कर मोक्षाभिलाषा से धर्म करो।
इति एकादशो धर्मशुद्धयुपदेशाधिकारः ।