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२४८ . अध्यात्म-कल्पद्रुम रखता हो तो वह बच नहीं सकता है वैसे ही बड़ी बड़ी तपस्याएं क्रियाएं करने वाला मनुष्य यदि मत्सर करता हो तो मोक्ष नहीं पा सकता है। आडंबर व दिखावे के लिए किये गए सब अनुष्ठान व धार्मिक काम मात्सर्य से निरर्थक हो जाते हैं।
शुद्ध पुण्य अल्प हो तो भी उत्तम है मंत्रप्रभारत्नरसायनादि, निदर्शनादल्पमपीह शुद्धम् । दानार्चनावश्यकपौषधादि, महाफलं पुण्यमितोऽन्यथान्यत् ॥१२।।
__ अर्थ-मंत्र, प्रभा, रत्न, रसायण, आदि के दृष्टांत से दान, पूजा अावश्यक, पौषध आदि बहुत कम हो लेकिन यदि वे शुद्ध हों तो बहुत फल को देते हैं और यदि बहुत होते हुए भी अशुद्ध हों तो मोक्ष रूप फल नहीं देते हैं ॥ १२ ॥
उपजाति विवेचन आज प्रायः तत्त्वज्ञान के अभ्यास बिना समझते हुए भी, केवल क्रिया की तरफ अधिक रुचि रहती है, आयंबिल की अोलीजी, उपधान, वर्षी तप आदि अनेक बार कर लिए जाते हैं व उनकी संख्या को महत्त्व दिया जाता है इसी तरह से सामायिक की संख्याओं की कीमत की जाती है यहां तक की जीवन पर्यंत सामयिक (भागवति दीक्षा) करने वाले भी कई हैं लेकिन यदि इन सब में शुद्धि नहीं है, आवेश, क्रोध, छल कपट, परिग्रह, ममता कम नहीं नहीं हुवे हों तो वे सब काम उतने लाभकारी नहीं होते हैं जितने कि होने चाहिए। मंत्र के शब्द, सूर्य चंद्र की प्रभा