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कषायत्याग
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विवेचन सामान्य प्रज्ञान पुरुष में और महापुरुष में अंतर ही यही है कि पहला छोटे छोटे कारणों से क्रोधी होकर बदला लेने को तैयार हो जाता है । जब कि दूसरा शक्तिशाली होता हुवा भी बदला लेना तो दूर रहा, वरन उसका उपकार करना चाहता है, उस पर अमृत बरसाता है, उसके कल्याण की कामना करता है। अतः जिसे जन्म मरण के चक्र में से निकलने की अभिलाषा है वह इस श्लोक का मनन करे।
कषाय निग्रह को गुणस्तव कदा च कषायनिर्ममे भजसि च नित्यमिमान् यत् । किं न पश्यसि दोषममीषां, तापमत्र नरकं च परत्र ।। ५ ॥
अर्थ–कषायों ने तुझ पर कौनसा गुण (उपकार) किया और कब किया ? जिससे तू हमेशा उनका सेवन करता रहता है ? इस भव में संताप और परभव में नरक देने वाले उनके दोषों को क्या तू नहीं देखता है ? ॥ ५॥ स्वागता
विवेचन कषाय से किसी प्राणी को लाभ हुवा हो यह कभी जाना नहीं गया। हानि तो प्रत्यक्ष ही है, क्रोध से प्रशांति, मान से अहंकार, माया से प्राडंबर, लोभ से परिताप होता है यह सभी के अनुभव की बात है।
कषाय करने और त्यागने के फल पर विचार यत्कषायजनितं तव सौख्यं, यत्कषायपरिहानिभवं च । तद्विशेषमथवै तदुदर्क, संविभाव्य भज धीर विशिष्टम् ॥ ६ ॥
अर्थ - कषाय सेवन से जो सुख मिलता है और कषाय