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__ अध्यात्म-कल्पद्रुम
यदि यह ठीक कह रहा है तब तो मुझे अपनी कमजोरी दूर करनी चाहिए और यदि यह गलत कह रहा है तब तो मेरी परीक्षा है कि मैं सहनशील हूँ या नहीं ? यदि सहनशील नहीं हूँ तब तो अपमान के योग्य हूं ही और यदि इन सब कटु वचनों और अपमानों को शांति से सुनने वाला सहनशील हूं तब तो मैं उन्नति की एक सीढ़ी और चढ़ा कसौटी में ठीक
उतरा।
____ अपने आपको वश में न रखने वाले लोग अति वृष्टि में तणाते हुए उन पशुओं की तरह होते हैं जो जाना कहीं चाहते हैं लेकिन ले जाए कहीं और जाते हैं । अतः प्रात्मसंयमी को मान का त्याग करना चाहिए एवं अहंकार का प्रतिकार करना चाहिए।
क्रोष का त्याग करने वाले योगी को मोक्ष प्राप्ति श्रुत्वाक्रोशान् यो मुदा पूरितः स्यात्, लोष्टाद्य र्यश्चाहतो रोमहर्षी । यः प्राणान्तेऽप्यन्यदोषं न पश्यत्येष
श्रेयो द्राग् लभेतैव योगी ॥४॥ अर्थ-जो आक्रोश (कटु वचन, अपमान) सुनकर आनंद से भरपूर हो जाता है, जिसको लोह आदि से चोट पहुंचाने पर भी रोम रोम में हर्ष होता है, जो प्राणांत कष्ट सहता हुआ भी अन्य के दोष नहीं देखता है वही योगी है और शीघ्र मोक्षगामी है।
शालिनि