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________________ अथ पञ्चमो देहममत्व मोचनाधिकारः पिछले पाठों से स्पष्ट हो चुका है कि स्त्री, पुत्र और धन का मोह प्राणी के लिए बंधनकर्ता है । इन तीनों तरह के मोह के साथ ही शरीर का मोह भी विचारणीय है । शरीर के मोह में फंसकर अपने कर्तव्य से च्युत नहीं होना चाहिए और शरीर को अति कोमल नहीं बनाना चाहिए इस विषय में यह अधिकार लिखा है। शरीर को पाप से नहीं पालना चाहिए पुष्णासि यं देहमघान्यचिंतयंस्तवोपकारं कमयं विधास्यति । कर्माणि कुर्वनिति चितयाति, जगत्ययं वंचयते. हि धूर्तराट् ॥१॥ __अर्थ—पाप का विचार नहीं करता हुवा जो तू शरीर का पोषण करता है वह शरीर तेरा क्या उपकार करेगा ? अतः उस शरीर के लिए हिंसादि कर्म करते हुए, अाते हुए काल का (भविष्य का) विचार कर । यह शरीर रूपी धूर्त, प्राणी को संसार में ठगता है ॥ १॥ वंशस्थ विवेचन–शरीर और आत्मा अलग अलग वस्तुएं हैं। आत्मा का स्वभाव अजर, अमर, सत्, चित्, आनंद है जब
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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