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भावना के वशीभूत होकर उसको पुष्टि मे श्री मोतीचन्दभाई ने विवेचन किया एवं उसो दृष्टि से मैंने भी यह अल्प प्रयास किया है।
जीवमात्र के कल्याण की दृष्टि से प्रेरित होकर अपनी तुच्छ बुद्धि का मैंने परिचय दिया है जो कि विद्वानों के लिए तो हंसी का पात्र हो सकता है परन्तु मेरे जैसे उनअल्पबुद्धि वाले तथा साधारण मनुष्यों के लिए यह उपयोगी है जिनके पास पूरा ज्ञान का कोष नहीं है तथा जो उदर पूर्ति का साधन करते हुए पर्याप्त समय भी नहीं निकाल सकते हैं । अन्त में श्री वीतराग परमात्मा से सभी जीवों के कल्याण को कामना करता हुआ सभी जीवों से क्षमा माँगता हुआ मैं अपने कल्याण की प्रार्थना करता हूँ। आप इस ग्रन्थ का अधिक से अधिक लाभ उठावें यही अभ्यर्थना है। सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे । वैर पाप अभिमान छोड़ जग नित्य नए मङ्गल गावे ।। घर घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृति दुस्कर होजावे । ज्ञान चरित उन्नत कर अपना मनुज जन्मफल सब पावें ।।
खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे; मित्ती मे सव्व-भूएसु, वैरं मज्झ न केणई ॥
ओ३म् शांति ! शांति !! शांति !!! फतहचन्द महात्मा
( सातवीसदेवरी जैन विजयदशमी २०१५
मंदिर, किला ता० २२-१०-५८ )
(चित्तौड़गढ़ (राज.)