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पुत्रममत्व
पुत्र पुत्री शल्य रूप हैं
आजीवितं जीव भवान्तरेऽपि वा, शल्यान्यपत्यानि न वेत्सि कि हृदि । चलाचलैयै विविधाति दानतो, ऽनिशं निहन्येत समाधिरात्मनः ||२||
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अर्थ – हे चेतन ! इस भव में और परभव में पुत्र पुत्री शल्य हैं, यह तू अपने मन में क्यों नहीं जानता है ? वे कम या ज्यादा उम्र जीवित रहकर तुझे अनेक प्रकार के कष्ट देते ह और तेरी आत्म समाधि का नाश करते हैं ।। २ ।।
उपजाति
विवेचन – स्त्री ममत्व के पश्चात पुत्र पुत्री - ममत्व का पाश मानव को जकड़ कर बांधता है । हे आत्मा ! यदि तेरी संतान योग्य है तो तुझे कुछ समय के लिए शांति मिल सकती है परन्तु यदि वह योग्य है, स्वछंदी है या निरंकुश है तो फिर दुःखों का पार नहीं है । इतना ही नहीं, वह यदि अल्पायु है और जन्मते ही या ५-७ वर्ष की उम्र में गुजर जाती है तो अपनी स्मृति छोड़ जाती है और तुझे बेचैन करती रहती है, यदि वह युवावस्था में मर जाती है तो तुझे अंधे की लकड़ी की तरह से सहारा टूटने का खेद कराती रहती है, यदि विवाह के पश्चात मरती है तो विधवा पुत्रवधू या विधवा पुत्री के रूप में निराशा की संतप्त देवी तेरे घर में प्रविष्ट होकर तुझे सदा काल संसार के दुःखों की याद दिलाती रहती है और
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