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अध्यात्म- कल्पद्रुम
की वस्तुएं निकाल कर उनके मन को अधिक आकर्षित करता है, ठीक वैसे ही मोहराजा सुन्दर स्त्री के नुपुर की ध्वनि रूप या कोकिलकण्ठा के कर्ण प्रिय स्वर रूप डुगडुगी द्वारा हमें प्राकर्षित करता है और जादू की पिटारी रूप स्त्री हमारे हाथों में सौंप देता है, जैसे उस पिटारी में से जादू के कबूतर निकलकर हमें मोहित करते हैं ठीक वैसे हो संतान पैदा होकर हमें मोहित करती है और भवबंधन रूप मोह श्रृंखला मज़बूत बनती है । है आत्मा ! तेरा सबसे बड़ा शत्रु मोह राजा है, उसी ने तुझे संसार में फंसाए रखने के लिए संतानरूप बंधन, तेरे चारों तरफ लपेट दिए हैं, जिनमें तू खुशी से फंस रहा है । जैसे बारिश में पतंगिए जान बूझकर दीपक में पड़ते हैं वैसे ही तू भी स्वेच्छा से मोह में पड़ रहा है ।
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इन बंधनों से निकलना अत्यन्त कठिन है । लोहे की जंज़ीर तोड़ना कभी आसान हो सकता है लेकिन मोह के बारीक बंधन तोड़ना उससे कई गुना कठिन हो जाता है । आर्द्रक कुमार, जो मुनि से गृहस्थी होकर फिर त्यागी बनना चाहते थे वे प्रबोध पुत्र के द्वारा सूत के तारों से बांधे गए थे, वैराग्य उत्पन्न होने पर भी १२ वर्ष तक उन्हें बंधनों में बंधा रहना पड़ा पश्चात ही उन बंधनों को तोड़ सके । प्रह; पुत्र पुत्री के मोह के बंधन कितने मजबूत होते हैं; जब वैराग्यवासित आत्मा को भी उनसे दूर होना बड़ा कठिन हो जाता है तो फिर दूसरों का तो कहना ही क्या ?