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શ્રી જૈન જ્ઞાન ગીતા. णिहोणि संगच्छति अंतकाले, अहोसिरं कटु उवेइ दुग्गं ॥ २६५ हणत्थिदंह भिंदणं दहेति, सद्दे सुर्णिता परहम्मियाणं ते नारगाओ भयभिन्नसन्ना, कखति किंन्नामदि संवयामो || २३६ जइ ते सुया वेयरणी भिदुग्गा, णिसिओ जहा खुरइव तिक्खसोया तरंति ते वेयरणो भिदुग्गा, उसुचोइया सत्ति सुहम्ममाणा ॥ २३७ से सुचई नगर वहेब सद, दुहो वणीयाणी पयाणि तत्य उदिण्ण कम्माण उदिण्ण कम्मा, पुणो पुणोते सरहं- दुहेति ॥ २३८ एयाई फासाइं फुसंति बालं, निरंतरं तत्थचिर ठितीयं न हम्म माणस्स उहोइ ताण, एगो सय पचणु होइ दुक्ख ॥ २३९