SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५७ ) युगवीर को यह बात सुनकर बहुत बड़ा आघात लगा - 'अरे रे ? इसीलिये यह प्रेम का सुनहरी जाल फैलाया गया था ! ' फिर भी वह संयत स्वर से बोला- “ पहले आपके धर्म का अध्ययन तो करूँ । फिर सोचूंगा कि ईसाई धर्म का अनुयायी बनूं या नहीं ?" यह सुनकर ऐमिली के पिता प्रसन्न हो गये । उसने उसे ईसाई धर्मग्रन्थ भेंट में दिये । युगवीर बाइबिल पढ़ी । परन्तु उसकी बुद्धि उससे सन्तुष्ट नहीं हुई । उसने प्रेमिका के पिता की शर्त यह कहकर ठुकरा दी, कि - " धर्म और प्रेम में क्या संबन्ध ? मैं अपने ही धर्म की आराधना नहीं करता । मैं धार्मिक हूँ ही नहीं तो धर्मान्तरण की बात ही कहाँ रही ? हाँ, मुझे प्रेम में आस्था है । प्रेमी का धर्म प्रेम ही होता है । बस, उससे संबन्धित धर्म को धारण करने को मैं तैयार हूँ ।" " तब तो आप अब इस घर में आवें ही नहीं ।" "क्या एमिली की भी यही इच्छा है ?" "हाँ, यही इच्छा है ।" ""मैं उससे एक बार मिलना चाहता हूँ ।" " परन्तु वह तुमसे मिलना नहीं चाहती।" "अच्छा! " युगवीर की आँखों के आगे अँधेरा छा गया। वह लड़खड़ाते पाँवों से चल पड़ा । वह उस युवति से बहुत प्रेम करता था । वह उदास हो गया । कुछ दिन बाद उसने सुना कि एमिली का विवाह उसके एक प्रतिस्पर्धी के साथ हो गया है । इससे उसे बड़ा दुःख हुआ । उसके अहंकार को बहुत बड़ी ठेस लगी । गुणधीर का उसकी उदा- सीनता की ओर ध्यान गया । उसने एकदिन प्रेम से युगवीर से कहा"भाई ! तुम इन दिनों बहुत सुस्त दिखाई दे रहे हो । क्या बात है ?" "कुछ भी तो नहीं ?” – उसने बात टालना चाही । गुणधीर ने हँसकर कहा - "भाई ! अब तुम्हें गृह संसार में अपने
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy