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________________ ( ५१ ) मान को हार रविप्रभ और अयःप्रभ दोनों सगे भाई थे। परन्तु दोनों की प्रकृति में बड़ा अन्तर था। रविप्रभ ज्ञानी और विनीत था। किन्तु अयःप्रभ अल्पबुद्धि और अहंकारी था रविप्रभ अपने लघु भ्राता के प्रति अतिवत्सल था। वह अपने भाई के दूषण छुड़ाना चाहता था। अतः वह समय-समय पर उसे प्रेम के साथ ज्ञान प्रदान करने का प्रयत्न करता था। यों अयःप्रभ भी अपने ज्येष्ठ भ्राता के प्रति पूज्यभाव वाला था। किन्तु वह किसी भी बात को सहज में ही मान लेनेवाला जीव नहीं था। ___उनके यहाँ वंश-परम्परा से एक तीक्ष्ण तलवार सुरक्षित चली आ रही थी। उसके पीछे पूर्वजों के गौरव की कहानियाँ जड़ी हुई थीं। उनके पूर्वजों ने उसके बल से कई युद्धों में विजय-वैजयंती फहराई थी। वह तलवार इतनी तीक्ष्ण थी कि बीच के कैसे भी अवरोधों को काटती हई शत्र के सिर को धड़ से जुदा कर देती थी। फिर भले ही वे अवरोध काष्ट के हों या लौह के हों-उन्हें छेदने में कोई अन्तर नहीं पड़ता था। अयःप्रभ उस तलवार को धारण करने लग गया। उसने उस तलवार का प्रयोग करके परीक्षण कर लिया। अतः पूर्वजों की गौरवगाथाएँ निरी गल्प न रहकर सत्य कहानियों के रूप में सत्य सिद्ध हो गयी थीं। उस तलवार को धारण करने से उसका अहंकार दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। रविप्रभ को विचार आया कि यह अयःप्रभ इस अहंकार में कहीं कुछ अनर्थ न कर बैठे तो ठीक है। इसमें राजपूती अकड़ घर करती जा रही है। बात-बात में इसका हाथ तलवार की मूठ पर चला जाता है। यह कैसे समझे? कैसे इसका अहंकार दूर हो ? एक दिन प्रातःकाल के समय रविप्रभ घर के बाहर खड़ा था। पास में ही रुई का ढेर पड़ा था। तभी अयःप्रभ भी सामने आ गया। उसकी कमर में वही तलवार लटक रही थी। रविप्रभ ने कहा-"हमेशा तलवार बाँधे-बाँधे ही फिरते हो!"...
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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