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________________ ( ४१ ) और परपीड़न अनुक्रिया से क्रोध बाहर में सार्थक होता है। जिससे क्रोधी को सन्तोष होता है। क्रोध के सार्थक न होने पर क्रोधी को असन्तोष होता है। जिससे वाष्प-मुंचनादि तीन अनुक्रियाएँ होती हैं । इनसे ही वह संतोष करता है। अब क्रोध की प्रतिक्रिया बतलाते हैं कोहो उप्पायए कोहं, अप्पाणम्मि परे जणे । न होज्ज वासिओ अप्पा, जिण-वयामएण जं ॥१०॥ . जो जिनदेव के वचनामृत से आत्मा वासित नहीं हो तो क्रोध अपने और परजन में क्रोध ही उत्पन्न करता है। टिप्पण-१. क्रोध करने पर जिस पर क्रोध किया जाता है उसे भी क्रोध आता है। २. क्रोध उदित होने पर भावकर्म के रूप में परिणत हो जाता है। जिससे पुनः नये क्रोध रूपकर्म का बन्ध होता है। उस कर्म के उदित होने पर पुनः क्रिया, अनुक्रिया और प्रतिक्रिया का दौर चलता है। इसप्रकार यह कर्म-चक्र निरन्तर चलता रहता है । ३. जिस पर क्रोध किया जाता है, उसके हृदय में वैर जाग्रत होता है । जिससे वह भी क्रोध करता है। फिर उसके क्रोध से क्रोधी के हृदय में वैर जाग्रत होता है और वह पुनरपि क्रोध करता है । इसप्रकार वैर की परम्परा चलती है। ४. जो आत्मा जिनवचनामृत से भावित हो जाता है वह क्रोध के बदले क्रोध नहीं करता है तो वैर-परम्परा टूट जाती है तथा अन्य पर क्रोध आने पर पश्चाताप करता है-प्रतिक्रमण करता है तो बद्ध क्रोध रूप कर्म रस-विहीन होकर नष्ट हो जाता है । ५. जिनवचन से भावित आत्मा क्रोध को उदय में नहीं आने देता है । यदि उदय में आ गया हो तो उसकी क्रिया होते ही सम्हल जाता है और उसे अनुक्रिया तक नहीं पहुंचने देता है । कदाचित् यत्किञ्चित् अनुक्रिया-प्रतिक्रिया भी हो गयी हो तो वे निष्फल हों वैसे प्रयत्न
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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