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________________ ( १९६ ) और सुविचार शब्द का अर्थ है-कषाय-स्वरूप आदि का पुनरपि पुनः चिन्तन । सामान्य रूप ज्ञान शब्द का अर्थ है-सही समझ या तत्त्वबोध और सुविचार शब्द का अर्थ-शुभ या प्रशस्त भावों का अभ्यास । ४. बुद्धमन अर्थात् जाग्रत और सुसंस्कृत मन । ज्ञान से मन जाग्रत और सुविचार से मन संस्कारित होता है। ५. जाग्रत मन उदित होते हुए कषायों को जान सकता है । अत: उन पर नियन्त्रण सहज ही हो सकता है। ६. सुसंस्कृत मन सबल होता है। अतः वह अपने ऊपर कषायों को हावी नहीं होने देता है। ७. कषायों में नहीं बहने और उनकी सत्ता अपने ऊपर नहीं चलने देने से वे क्षीण होने लगते हैं। ८. ज्ञान और सुविचार कषाय की दुर्बलता में परमावश्यक हैं । धैर्यवान ही अभ्यास कर सकता है-- एवं कसायम्मि दुहं धरतो, पावं मुणंतो अरइं वहतो। पोइंजिणिदम्मि मई करंतो, धीरो कसायं खु किसं करेइ ॥१४० इसप्रकार धीर पुरुष कषाय में दुःख धारण करता हुआ, पाप समझता हुआ, अरति भाव वहन करता हुआ और जिनेन्द्रदेव में प्रीति और मति करता हुआ कषाय को कृश करता है। टिप्पण--१. एवं अर्थात् ऊपर बताये गये भाव-साधनों के अभ्यास से। २. कषायों का सही स्वरूप समझ में आने पर और उस बोध के स्थिर रहने पर ही वे दुःखरूप लगते हैं और उनसे प्रेरित प्रवृत्ति से दुःख होता है । कषायों और उनके वशीभूत होने में तीव्र दुःखानुभव होता है, तभी उन्हें त्यागने की बुद्धि होती है। ३. 'कषाय पाप है'-यह प्रतीति होना चाहिये और जो भी पाप हैं, वे सब अकरणीय हैं-यह निर्णय भी दृढ़ रूप से होना चाहिये । ४. पापों में अरुचि ही उनके क्षय का प्रधान हेतु है । ५. 'कषायम्मि दुहं-पद से स्वरूप-चिन्तन आदि हेतुओं को, मुणंतो शब्द से निरीक्षण को तथा अरइं पद से अन्तिम हेतु को ग्रहण करके, सभी हेतुओं को ग्रहण कर लिया है। ६. 'जिनत्व' के अस्तित्व के विषय में बौद्धिक निर्णय करना
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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