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प्रारंभ करने से पूर्व पुन: मंगलाचरण किया है । २. कषाय- प्रवृत्ति मोक्षमार्ग से विपरीत प्रवृत्ति है । असत्य का प्रधान हेतु कषाय ही है । अत: उसके जय के लिये उससे मुक्त आत्मा का स्मरण ही बलप्रदान कर सकता है । ३. जिसने कषायों को जीत लिया है, उसने जय पा ही ली है । तदपि यह अकषायी देव को 'आप जीतो' यह कहा गया है, इसका आशय यह है कि 'आपको स्मरण करनेवाले साधक के हृदय में ध्येय रूप से आप अवतीर्ण होवें अर्थात् अकषायी आत्मस्वरूप की छवि पूर्ण रूप से अंकित हो जाये' अथवा 'साधक का उपयोग अकषायभाव में ही रहे -- फिसले नहीं ।' ४. मेरे स्मृति - 'पटल पर आप उभरें तो आपके चरण भी मेरी स्मृति में आयें ही । कषाय से मुक्त आत्मा कुछ ही क्षणों में सर्वज्ञ हो जाते हैं । अकषायी के चरण अर्थात् सर्वज्ञ के चरण को कमल की उपमा दी है । जैसे -कमल की कणिका से अक्ष – कमलगट्टे उपलब्ध होते हैं, वैसे ही सर्वज्ञ जिनेश्वरदेव के चरण-कमल की श्रद्धा से अक्ष = परमात्मतत्त्व उपलब्ध होता है । ५. सर्वज्ञ - चरण-कमल का दूसरा आशय यह हो सकता है कि प्रभु ने जिन उपायों को व्यवहार में उतारकर कषायों को जीता और सर्वज्ञता पायी उन उपायों का मृदु कोमल रूप । इसप्रकार चरण को कमल की उपमा देकर साध्यसाधन में कथञ्चित् अभेद दरसाया है । ६. 'स्मरण किये गये चरण-कमलों को नमस्कार अर्थात् साध्य-साधन में उपयोग जमाकर आत्मवृत्ति को उस ओर ढालना । ७. आत्मवृत्ति को सर्वज्ञ चरण-कमलों में केन्द्रित करने से कषायों को क्षय करने की विधि का यथार्थ रूप से ज्ञान हो सकता है । परन्तु उसका वर्णन करने का बुद्धि-कौशल चाहिये । ऐसे बुद्धिकौशल को देने की प्रार्थना की गयी है । ८. मतिमान का अर्थ 'मतिज्ञान के स्वामी' नहीं है, किन्तु सर्वज्ञ हैं । शास्त्रों में भगवान महावीरदेव के लिये 'आसुपण्णे' 'माहणेण मईमया' आदि पदों का प्रयोग हुआ है । दूसरा आशय - मेरी स्मृति में मति में पधारे हुए प्रभो ! ९. मतिमान् का अपने हृदय में स्मरण करने पर ही शुद्ध