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________________ ( १५७ ) करता है और शारीरिक कुचेष्टाएँ भी करता है। ३. भटकाने के दो अर्थदेश-विदेश, अच्छे-बुरे स्थान आदि में भ्रमण करवाना और भवों में परिभ्रमण करवाना । दोनों अर्थ ग्राह्य हैं। ४. कुटुम्ब का छुड़वाना दो कारण से होता है - धनार्जन के लिये कुटुम्ब से दूर करना और स्वार्थ में बाधा पड़ने पर कुटुम्ब का परित्याग करवाना। ६. भूख, प्यास आदि शारीरिक कष्ट भी लोभ के वश जीव सहन करता है। 'भूख-प्यास' शब्द से गर्मी, सर्दी आदि सभी प्रतिकुलताएँ, दुःख और वेदनाओं को ग्रहण कर लेना चाहिये । जीव लोभ में मारणान्तिक कष्ट तक सहन करता है। मानव धनार्जन के अर्थ-पुरुषार्थ के नाम पर विपरीत आचरण से अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। लोभ से उत्तम भाव का नाश और अशुभ भावों का उत्पादन संतोसं च सुहं संति, हरइ गुण-नासणो । लोहो करेइ दोसे वि, पावाण जणगो हु सो ॥९॥ लोभ संतोष, सुख और शान्ति का अपहरण करता है, क्योंकि (वह) गुणों का नाशक है और (वह) (क्रोध आदि अनेक) दोषों को (उत्पन्न) करता है, क्योंकि वह पापों का जनक है। टिप्पण-१. लोभ प्रमुख रूप से संतोष और शान्ति का नाश करता है। २. 'सुह' शब्द के दो अर्थ-सुख और शुभ । यहाँ दोनों अर्थ ग्राह्य हैं। ३. संतोष आदि के सिवाय लोभ समस्त सद्गुणों का नाश करता है। ४. लोभ दुर्गणों का उत्पादक भी है। लोभी अठारहों पापों में प्रवृत्त हो सकता है । ५. लोकभाषा में लोभ को पाप का बाप कहा हैं । लोभ से दुष्कर्म में प्रवृत्ति लोहेण पेरिया जीवा, दुळं कम्मं करंति हि । ते कि कज्जंण कुव्वंति, जे उ तेण विमोहिया ॥९६॥
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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