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________________ ( १५२ ) में! ये रूढ़िवादी लोग तो बकते ही रहेंगे । करिये न क्रान्ति ! बजाइये, धर्म-प्रचार का बिगुल ! हम आपके साथ में हैं....' ___ शीलवान मुनि कल्पनालोक में अपने को विश्व-मसीहा के रूप में निहारने लगे । एक दिन वे उड़ चले, विदेश की ओर । फिर तो वे संघ से पूरी तरह कट गये । साधुवेश में रहते हुए भी अधिकांश साध्वाचार का परित्याग कर दिया। इसप्रकार शीलवान मुनि की वक्रता रूप माया ने उन्हें मोक्षमार्ग से अति दूर फेंक दिया। इस झेंप को मिटाने के लिये उनका चिन्तन और मोड़ खा गया- 'मार्ग पंथ है । पंथ और धर्म दोनों अलग-अलग हैं। पंथ अशाश्वत् है और धर्म शाश्वत् । पंथ संकुचित होता है और धर्म विशाल....' यों वे उत्सूत्र-प्रतिपादन करके धर्मक्रान्ति का रास्ता साफ करने लग गये। स्पष्टीकरण-ये दोनों साधु की माया के उदाहरण हैं। साधु उत्तम कोटि के साधक हैं । माया से धर्महानि का उदाहरण उत्तम कोटि के साधक का देना ही योग्य है । मध्यम और जघन्य कोटि के साधक श्रावक और अव्रती सम्यक दृष्टि होते हैं । ये भी माया से धर्म में हानि करते हैं । वे श्रावकाचार से पतित होकर मिथ्यात्व में जा सकते हैं। माया से गति की हीनता इत्थि-कीव-तिरियाई, मायाए होंति देहिणो । माया-गइ-पडिग्घाओ, ताए हवीअ थी पहू ॥९॥ जीव माया से स्त्री, नपुंसक और तिर्यञ्च हो जाते हैं। (इसप्रकार) माया से गति का प्रतिघात (=अवरोध, विनाश) होता है। इस (माया के) कारण प्रभु (=भगवान मल्लिनाथजी) स्त्री हुए। टिप्पण-१. सिद्धान्त-विज्ञ कहते हैं कि छल-कपट से जीव की दुरवस्था होती है। क्योंकि आचार-विचार की उलझी हुई अवस्था है और उलझन
SR No.022226
Book TitleMokkha Purisattho Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmeshmuni
PublisherNandacharya Sahitya Samiti
Publication Year1990
Total Pages338
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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