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________________ होने पर चिंताग्रस्त बने, 1 गृहस्थों से सावद्य प्रवृत्ति करावे, तो वह अपने धर्म और पद की मर्यादा नष्ट करने वाला होता ही है । ऐसे आचार्य तभी होते हैं, जब संघ के दुर्भाग्य का उदय होता है । उन्मार्ग पक्षी आचार्य उन्मार्ग का पक्ष करने वाले आचार्य को तो धर्म - द्रोही ही कहना चाहिए । जो व्यक्ति या संस्था उन्मार्ग की प्ररूपणा, प्रचार और प्रसार करे. वे दर्शन एवं चारित्र के विघातक हैं। भले ही T "" वे स्वयं वैसा प्रचार नहीं करते हो, किन्तु उन्मार्ग प्रचारक का पक्ष भी करते हों, उसे अपने संघ, गच्छ या सम्प्रदाय में सम्मिलित रखते हों, उसके साथ संभोग रखते हों, उसके द्वारा किये जाते हुए उन्मार्ग के प्रचार को नहीं रोकते हों, तो वे सत्वहीन कठपूतली आचार्य, एक क्षण के लिए भी उस लोकोत्तर पद पर रहने के योग्य नहीं है । यह उनकी धृष्टता है कि वे अयोग्य होते हुए भी उस पवित्र पद पर बने रहें और उस पतन को देखते रहें । वह कैसा रक्षक है कि जिसके अधीनस्थ लोग ही चोरियाँ करते रहे और वह हाथ में डंडा लिए खड़ा खड़ा देखता रहे ? यदि वह अपने पद से चिपका रहे, तो अधीनस्थ धर्मप्रिय आत्मा को चाहिए कि ऐसे कठपुतली एवं पवित्र पद के गौरव को नष्ट करने वाले नेता की छाया का भी त्याग कर दे । आचार्यश्री कहते हैं कि उस पाप पक्षी उन्मार्ग का पक्ष करने वाले आचार्य का इस प्रकार त्याग कर देना चाहिए, जिस प्रकार 1. एक मुनि के एक व्यक्ति में ६० हजार रुपये थे । व्यक्ति गुजर गया, पुत्रों ने अंगुठा बता दिया । 81
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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