SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साईकल, डोली, व्हीलचेर, मोटर आदि दूराचार है, उसे सदाचार मनवाया जा रहा है । यथाच्छंदत्व पनपने में यह युग भी भूतकाल से बाजी मार रहा है । आचार्य की शुद्धता जइ कहमवि जत्थ गणे भिक्खुजणा संजमे कुसीला य । जइ सूरि सुद्धधम्मस्सट्ठिओ हविज्ञ दथ सो गच्छो ||८५|| यदि किसी गच्छ में साधु संयम में कुशील हो गये हों, किन्तु आचार्य शुद्ध धर्म में स्थिर रहे हों, तो वैसे गच्छ को गच्छ कहना चाहिए ।। ८५ ।। ऐसा गच्छ भी तभी सुगच्छ हो सकता है, जब कि आचार्य कुशीलियों को सुशील संपन्न बनाने में तत्पर हों और निराश होने पर कुशीलियों को छोड़कर गर्गाचार्य की तरह पृथक् हो सकते हों । अन्यथा कुशीलियों के साथ उनका रहना, न तो उचित है, न शांतिप्रद ही । उल्टा कुशीलियों के लिए वे रक्षक बन जाते हैं। और उनके साथ उपासकगण भी कुशीलियों को आदर देकर दुराचार को प्रोत्साहन देते हैं । चाण्डाल की तरह त्याज्य संजमहीणा मुणिणो जत्थ गणे हुंति सो वि मुत्तव्वो । जइ सूरि कुमग्गपरो सोवागकुलुव्व भव्वेहिं ॥ ८६ ॥ निम्मलजलसंपुण्णो सोवागंधुत्व गरहणिजो सो तिविहेण तस्स संगो वज्जेयव्वो सुसाहूहिं ॥८७॥ 74
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy