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________________ देते हैं । वे उपाश्रय में या गृहस्थ के घर में खाजा आदि पक्वान्न तथा पाकादि करते, कराते हैं ।।६९।। उस समय वे साधु, ज्योतिष में निष्णात होकर गृह निर्माण, यात्रार्थ प्रयाण, लग्न गर्भाधानादि संस्कार, कूपखननादि अनेक प्रकार के सभी प्रकार के पापमय प्रवृत्ति वाले मुहूर्त निकालकर देते थे, केवल जैनियों को ही नहीं, जैनेतरों को भी सभी लोगों को । उनकी ज्योतिष एवं सामुद्रिक विद्या की प्रशंसा सुनकर अन्य लोग भी उनके पास आते और उनसे मुहूर्त निकलवाते । शुभ मुहूर्त प्रास करने का अभिलाषी व्यक्ति खाली हाथ नहीं आता । खाली हाथ आना पहले से अपशुकन माना जा रहा था । अत एव श्रीफल और रूपानाणा (चांदी का सिक्का) तो लाता ही । उन महात्माओं को भी अपने ज्योतिष के धंधे के प्रसार और अर्थ भेट की अपेक्षा थी । पाप पुण्य एवं धर्म-अधर्म का विचार उनमें से निकल चुका था। उनकी ज्योतिष विद्या, पापप्रसारिणी और अर्थसाधनी बन गयी थी । यह प्रक्रिया कहीं-कहीं आज भी प्रारंभ है । इससे भोले भक्त खुश भी है । हमारे महाराज ने हमारे लिये मुहूर्त निकालकर दिया । स्वाद के शोकिन होकर वे गृहस्थ के घर में मिष्टान बनवाया करते थे तथा शीतादि काल में शरीर बल बढ़ाने के लिए मेथीपाक, सँठपाक; बादामपाक आदि पाक बनवाकर ग्रहण करते थे । गृहस्थ के घर ही नहीं अपनी शाला उपाश्रय में भी पक्वान्नादि बनाकर मजे के साथ खाते थे ।। 1. ऐसा आज भी हो रहा है। और भक्त भक्ति के बहाने उनके रसनेन्द्रिय के पोषण में पाप के भागीदार बन रहे हैं। 60
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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