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________________ पतन की ओर जाने वाली साधुता में इस प्रकार की बातें होती रहती है । कुलनीइठिइभंग - प्पमुहाणेगप्पओससंदिसणं । सावाइ भयदंसणमिमाइकज्जाइवट्टणयं ||६५ || वे कुलनीति एवं मर्यादा का भंग करने आदि अनेक दोषों का प्रचार करते हैं । उपासकों को शाप देने का भय बतलाते हैं । इस प्रकार अनेक कार्यों में वे लगे रहते हैं ।। ६५ ।। कुल परंपरा से चली आई उत्तम नीति एवं मर्यादा के विपरीत प्रचार कर उन्हें नष्ट करने में वे कुसाधु लगे रहते थे । वे लोगों से कहते "क्या रखा है इन रूढ़ियों में? ये रूढ़ियाँ मनुष्य को बांध देती है, उनकी स्वतंत्रता का हरण कर लेती है। स्वच्छन्द विचरण में मनुष्य का विकास होता है। रूढ़ि के बंधनों में बंधकर स्त्रियों की क्या दशा हो गयी ? पशु में और उनमें क्या अंतर है? समिति, गुप्ति, सॅमाचारी ये सब पुराने सड़कर जर्जर बने हुए नियम हैं। अब इनकी कोई आवश्यकता नहीं है । जमाने के साथ इन बंधनों को तोड़ कर स्वतंत्र हो जाना चाहिए । "1 इत्यादि प्रकार से कुगुरु अपनी रुचि के अनुकूल प्रचार करते हैं, वे कुलोत्तम स्त्री-पुरुषों के मन में मर्यादा तोडने का भाव भरते और दूसरों के शिष्यों को बहकाते, उपासकों को अपने अधीन बनाये रखने के लिए वे अनुकूल और प्रतिकूल उपाय करते रहते हैं, लोगों को अपनी मंत्र शक्ति, तंत्र शक्ति और देव - बल का 1. वर्तमान में भी कुछ साधु यह कहते है कि आधा कर्मी बाधा कर्मी की बातें पुरानी हो गयी। अब उसको भूल जाओ। आज भी अपने भक्तों को अंगुठियाँ, पुडियाँ आदि देकर उनको सुख-संपत्ति प्राप्त करवाने का कार्य मुनि करते है । ऐसा करके गर्वित भी होते है । 56
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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