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________________ पतन के निम्नतम चरण हाणुव्वट्टणभूसं, ववहारं गंधसंग्रहं कालं । गामकुलाइममत्तं, थीनहं थीपसंगं च ||६२|| वे कुगुरु स्नान करते हैं, उबटन करते हैं, विभूषादि करते हैं, सुगंधित तेल इत्र आदि का संग्रह रखते हैं, कालाचार करते हैं ( मुहूर्त्तादि देखते और गृहस्थों को बताते हैं) ग्राम और कुल पर ममत्व रखते हैं। स्त्रियों का नृत्य देखते और स्त्री प्रसंग करते हैं ।।६२।। उपरोक्त गाथा हकीकत बतलाती है कि वेश के सिवाय सर्वतोमुखी पतन हो चुका था । जब स्नान, मर्दन, उबटन और इत्रादि सुगंधित द्रव्यों का उपभोग होने लग गया, स्त्रियों के मधुर गीत, मनोहर नृत्य देखने लग गये, 1 और स्त्री प्रसंग भी करने लग गये, देव- द्रव्यादि के निमित्त से वित्त मिल गया, मंदिरों की आवक मिल गयी, पांचों इन्द्रियों के भोग मिल गये और स्त्री प्रसंग तक होने लगा, तो शेष बचा ही क्या ? केवल वेश और नाम ही । कितना पतन ? कितना अंधेर ? उपासकों में भी अंधापन कहां तक आया ? पाठक देखें कि उपासकों के अज्ञान, अंधविश्वास और सत्वहीनता ने दुराचार को कहां तक बढ़ने दिया ? यदि ज्ञान नेत्र खुले होते या आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी की आवाज सुनी होती, तो ऐसी क्या स्थिति चल सकती थी ? 1. वर्तमान में वरघोडे में स्त्रियों को बच्चियों को नचाकर उनके अंगोपांगों को देखने का आनंद लूटने भी लग गये है। मोटरों में स्त्रियों के साथ बैठे साधु पकड़े गये। गुरुमंदिर में रतिक्रीड़ा के प्रसंग हो गये। तो साधुता रही ही कहां? कहीं बच्चियों ने स्त्रियों ने स्वेच्छा से भी समर्पण किया तो कहीं बलात्कार भी हुआ। 52
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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