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________________ तीव्र आवाज श्री जिनवल्लभसूरिजी ने 'संघ पट्टक' ग्रंथ में उठाई थी। उन्होंने वैसे साधु नाम धारियों के विषय में लिखा था कि आकृष्टं मुग्धमीनान् बडिशपिशितवचिबमादर्य जैनं । तन्नाम्ना रम्यरूपानपवरकमठान् स्वेष्टसिद्ध्ययै विधाप्य ।। यात्रास्नात्राद्युपायैर्नमसितक निशाजागराद्यैच्छलैश्च । श्रद्धालु मजैनैश्छलित इव शठैर्वञ्च्यते हा जनोऽयम् ।।२१।। अर्थात् - जिस प्रकार रसनेन्द्रिय में लुब्ध ऐसी मच्छियों को फँसाने के लिए, मांसाहारी लोग, काँटे में मांस लगाकर पानी में डालते हैं और उससे मच्छियाँ फँस जाती है, उसी प्रकार साधु वेशधारी लोग, भोले श्रद्धालु लोगों को ठगने के लिए, काँटे में लगाये हुए मांस के समान जिनमूर्ति दिखाकर और यात्रा, स्नान तथा रात्रि जागरण' आदि क्रियाओं के स्वर्गादि फल बताकर छल करते हैं और भोले अनभिज्ञ अंध श्रद्धालु जैनियों को ठगते हैं। ___इस प्रकार श्रद्धालु भक्तों को ठगते हैं और देव आदि के निमित्त से दिये हुए द्रव्य का भी उपयोग करते हैं । वास्तव में ऐसे सावधाचारी और अनैतिक जीवन जीने वाले लोग, मात्र वेश से ही साधु होते हैं। जिस प्रकार साधु वेश ग्रहणकर "सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि" प्रतिज्ञा लेने के बाद जिनघर-मंदिर बनवाने वाले सावधाचारी हैं, उसी प्रकार स्थानक या उपाश्रय बनवाने वाले और इसकी प्रेरणा करने और आदेश देने वाले भी सावद्याचारी हैं । वे षट्काय जीवों का आरम्भ करवाकर अपने संयम का भंग करने वाले हैं। 1. रात्रि जागरण, रात्रि भक्ति उन चैत्यवासियों की देन है। प्रबुद्ध वर्ग विचार करें। - 51
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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