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________________ कर दिया जाता है । कई भोंदू भक्त उसके अंधपुजारी हो जाते हैं और उसके भयानक पाप को दबाने का प्रयत्न करते हैं । पचास हजार साधु साध्वियों के प्रमुख एवं भगवान् महावीर के पट्टशिष्य, महाश्रमण गौतम अनगार की मामूली सी बात पर जो श्रावक उन्हें कह सकता है, उसी उपासक परंपरा के हमारे नाम मात्र के धोरी श्रावक, व्यभिचारियों को भी कुछ नहीं कह सकें और वीर परंपरा को पतन की ओर जाने दें, यह कैसी हीनतम दशा है? साधु के समीप व्याख्यान, के अतिरिक्त, साध्वियों और गृहस्थ महिलाओं को बैठने की आवश्यकता ही क्या है ? किन्तु उपाश्रय में देखते हैं, तो दिन में १ बजे के बाद वृद्ध साधु एक ओर बैठे हैं, तो उनसे दूर कोई युवा साधु, कुछ स्त्रियों के साथ हँस हँसकर बातें कर रहा है । कहीं कोई एक कमरे में अकेली स्त्री के साथ गुपचुप न जाने क्या कर रहा है ? आश्चर्य होता है कि इन मर्यादा भ्रष्टों का उपाय उपासक वर्ग क्यों नहीं करता ? क्यों बे समय साधुओं के पास स्त्रियों को जाने देता है? ऐसे दृश्य देखकर उन साधुओं और स्त्रियों पर पाबंदी क्यों नहीं लगाता ? यदि प्रत्येक संघ परिवार के प्रमुख द्वारा ऐसी पाबंदी लगा दी जाय, तो भ्रष्टाचार के एक बड़े कारण पर अंकुश लग जाता है। किन्तु सत्वहीन एवं व्यर्थ के झगड़े खड़े करके आपस में ही लड़ने वाले, उन वेशधारियों के और उनके पक्ष के हथियार बनकर क्लेश की उदीरणा करने में ही वे श्रावक अपना धर्म समझते हैं । ऐसी दशा में भ्रष्टाचार का 38
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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