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________________ उज्ज्वलता की रक्षा नहीं करती। यदि कोई धर्मप्रिय व्यक्ति धर्मभावना से प्रेरित होकर दंभियों के दंभ को रोकने का प्रयास करता है, तो भ्रष्टाचारी के पक्षकार उसके शत्रु हो जाते हैं। वे उस वीर शासन प्रेमी को तबाह करने-बरबाद करने पर उतारू हो जाते हैं । सम्बन्धियों और जाति में झगड़ा खड़ा करवाते हैं, मित्रों को शत्रु बना देते हैं । संप में फूट एवं शांति में अशांति खड़ी करके अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर लेते हैं। यदि इन भ्रष्टाचारियों के विरोध का प्रश्न उपस्थित होता है, तो धर्म के अनजान, भेड़चाल के चलने वाले एवं विवेकहीन लोग कहते हैं, कि-'यदि इनका विरोध किया, तो फिर हमारे यहाँ कोई साधु साध्वी नहीं आयेंगे। हमारा क्षेत्र खाली रह जायगा । जो खोटा होगा, वह अपने पाप का फल भुगतेगा । हमें इस झगड़े में पड़ने की आवश्यकता ही क्या है । चले वैसा चलने दो । आज जमाना ही ऐसा है', इत्यादि बातें कहकर उसको दबाने का प्रयत्न करते हैं । यदि वह उस भ्रष्टाचारी को अपनी पापलीला बंद करने का कहता है, तो वहाँ के समाज वाले स्त्री-पुरुष उसके विरोधी होकर इधर-उधर यों कहा करते हैं कि-'अमुक व्यक्ति साधुओं को तंग करता है, इसलिए वे नहीं आते ।' उन बिचारे अज्ञानियों को भ्रष्टाचारी, वेशोपजीवी की अपेक्षा है, किन्तु वीरधर्म की पवित्रता, श्रमणोपासकपन के कर्तव्य एवं पाप को प्रोत्साहन देकर सिर पर चढ़ाने की अधमता का कुछ भी विचार नहीं है । उनकी दृष्टि में तो केवल वेश मात्र है और वाचालता-जनरंजन की कला । यदि कोई भ्रष्टाचारी जनरंजन में कुशल है, तो उसके लिए तन, मन और धन अर्पण 37
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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