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________________ का बन्ध करता है, जिससे जन्म जरा मरण के भय से भयंकर ऐसे संसार सागर में गिरकर गोते खाता रहता है । उसका तिरकर पार पहुँचना बहुत ही कठिन है । घट्ठा मट्ठा पंडुर-वसणा, दवदवचरा पमत्तमणा । उद्दामा सूयलुव्व, निरंकुसा दुट्ठनागुव्व ||४७|| जत्थ य विकहाइपरा कोउहला, दव्वलिंगिणोकूरा । निम्मेरा निल्लज्जा, तं गच्छं जाण गुणभट्ट ।।४४|| __ जिस गच्छ में घिसकर, मसलकर एवं सल निकालकर कोमल और श्वेत किये हुए वस्त्र धारण करने वाले, शीघ्रता से चलने वाले, प्रमाद पूर्ण मन वाले, अभिमानी की तरह उद्दामप्रचंड एवं दुष्ट हाथी की तरह निरंकुश, विकथादि में तत्पर कुतूहल वाले, क्रूर, मर्यादाहीन और निर्लज्ज ऐसे साधु होते हैं, उस गच्छ को गुणों से भ्रष्ट गच्छ जानना चाहिए ।।४७-४८।। निरंकुश, उद्दण्ड, निर्लज्ज एवं मर्यादाहीन तो केवल लिंग से ही साधु अथवा नाम निक्षेप से साधु हैं, गुण की अपेक्षा तो असाधु ही है । ऐसे साधुओं का समूह जहाँ हो, वह भ्रष्ट समूह कहा जाय, तो अनुचित नहीं है । निरंकुश बैल अन्नत्थियवसहा इव, पुरओ गायंति जत्थ महिलाणं । जत्थ जयारमयारं, भणंति आलं सयं दिति ||४९|| जत्थ य अज्जालद्धं, पडिग्गहमाइ य विविहमुवगरणं| पडिभुंजई साहूहिं, तं गोयम! केरिसं गच्छं ||५oll जिस गच्छ में बिना नाथे हुए बैलों जैसे, स्त्रियों के सामने गायन करने वाले साधु हैं, जिस गच्छ के साधु 'ज' कार 'म' 32 -
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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