SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चोरों का समूह वयछक्कं कायछक्कमकप्पो गिहिभायणं । पलियंक निसिज्जा य सिणाणं सोभवज्जणं ॥४oll ए अट्ठारसदोसा, जत्थ निसेवंति साहुवेसधरा । धम्मधणहरणपरमं, तं पल्लि जाणं न हु गच्छं ।।४१|| प्राणातिपात विरमण से लगाकर परिग्रह विरमण रूप पांच महाव्रत और रात्रि-भोजन त्याग, ये छह व्रत और छह काय के जीव, इन बारह की विराधना, १३ अकल्पनीय वस्तुओं का सेवन, १४ गृहस्थ के बरतनों को काम में लेना, १५ पलंग, कुरसी आदि पर सोना बैठना, १६ गृहस्थ के घर बैठना, १७ स्नान करना' और १८ शरीर की शोभा बढ़ाना, इन अठारह दोषों में से किसी एक दोष का भी, जिस गच्छ के वेशधारी साधु, सेवन करते हैं, वह निश्चय ही संयमियों का गच्छ नहीं है, किन्तु धर्मरूपी धन को हरण करने वाले चोरों की पल्लि (गांव) है ।।४०-४१।। आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने जिनं १८ दोषों का उल्लेख किया, वे दशवैकालिक सूत्र के छठे अध्ययन के आधार पर हैं। उनके समय में इन दोषों का सेवन प्रायः होता था, ऐसा उस समय की स्थिति देखते प्रतीत होता है । आज इसी आधार पर स्थिति का निरीक्षण करें, तो स्थिति विषम लगती है । कई दोषों का तो जाहिर रूप में सेवन हो रहा है और अनेकों का गुप्त । इस प्रकार उक्त बतलाये गये सभी दोषों का सेवन वर्तमान में अधिकांश तथाकथित साधु वर्ग द्वारा किया जा रहा है । 1. रात को स्नान करने वाले, बाथरूम में डीबा भरकर पानी से स्नान करने वाले भी पूजे जा रहे हैं। 25
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy