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जिस प्रकार चोर का सहायक भी चोर होता है और राष्ट्रद्रोही को संरक्षण एवं सहायता देने वाला भी राष्ट्रदोह का अपराधी माना जाकर दंड का पात्र होता है, उसी प्रकार आत्मोत्थानकारी उत्तम धर्म एवं देवाधिदेव की आज्ञा के भंजक को आदर देने वाला, उनको सहयोग समर्थन करने वाला भी धर्म-द्रोही होता है । वह भी उस पाप का पोषक होने के कारण अपराधी होता है।
जो अनजान में साथ देते हैं, उनकी बात दूसरी है । वे तो अज्ञानी हैं, किन्तु जो साधुओं की रीतिनीति को जानते समझते हुए भी उनके पाप में सहायक बनते हैं, वे भगवदाज्ञा के विराधक होते हैं, उनकी दुर्नीति अवश्य ही खेद जनक है ।
___ कोई-कोई अबूझ व्यक्ति उन कुशीलियों के बचाव में कहते रहते हैं कि-"कुशीलियापन-शिथिलाचार तो सदा से है । यह कोई नयी बात नहीं है । शोर मचाने से शिथिलाचार मिट नहीं सकता । अत एव इस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए"आदि उनका यह कहना तो ठीक है कि शिथिलाचार नया नहीं है, पहले भी था । किन्तु आपत्ति यह है कि संघ, शिथिलाचार एवं शिथिलाचारी को उदरस्थ करले-अपने में घुला मिलाकर एक कर ले-यह स्थिति आपत्ति जनक है । आगम काल और उसके पूर्व शिथिलाचार था, तो उसका संघ में स्थान नहीं रहता था । संघ, शिथिलाचारी से अपना संबंध छुड़ा लेता था । आगमकार ने स्वयं आगमों में वैसा और उसके दुष्परिणाम का उल्लेख किया । वैसे शिथिलाचारी से संभोग नहीं रखने का नियम भी बनाया है । इतना ही नहीं, पासत्थ, कुशील, अवसन्नादि से
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