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________________ तथा उसके पक्ष के उपासक एवं पोषक समूह को संघ नहीं मानकर उसे विषधर साँप के समान भयंकर, फूटे हुए अंडे के समान निःसार एवं दुर्गंध युक्त तथा कौए के समान विष्ठा प्रेमी बताया । अब इस गाथा में आचार्यश्री कहते हैं कि ऐसे दुराचारियों के पोषक, सहायक एवं समर्थक समूह को संघ नहीं कहना चाहिए, उसे तो हड्डियों का ढेर मानना चाहिए । जिसमें प्राण हो, सोचने समझने की शक्ति हो, जिसमें ज्ञान चेतना हो, ज्ञपरिज्ञा से जो युक्त हो, वह तो दुराचारियों का पोषण नहीं कर सकता । वह हिताहित को सोच समझकर हितसाधना में ही प्रवृत्त होता है किन्तु जो जिनेश्वर के उत्तमोत्तम धर्म को पाकर भी दुराचारियों का सहायक बन रहा है और उसमें गौरव का अनुभव करता है, वह समूह, जीवित होते हुए भी मुर्दे के समान है और हड्डियों के ढेर के समान है। जिस प्रकार हड्डियाँ जड़ निष्क्रिय होती है और उन्हें जहाँ डाल दें वहीं पड़ी रहती हैभले ही अशुचि स्थान हो, वैसे दुराचारियों के उपासक भी हैं । उनका वे दुराचारी लोग, मनमाना उपयोग करते हैं और वे हड्डियाँ उन कुशीलियों के हाथों में कठपुतली की तरह नाचती है । जिस प्रकार कोई व्यक्ति पत्थर उठाकर किसी पर फेंक देता है और सिर फोड़ देता है । वह पत्थर स्वयं कुछ नहीं कर सकता, फेंकने वाला जैसा चाहता है, वैसा उसका उपयोग करता है । वह चाहे तो उसे पूजें, उससे बादाम फोड़े या किसी का सिर ही फोड़ दे । वह चाहे तो उसे पाखाने में लगावे । इसी प्रकार इन चलती फिरती हड्डियों का भी हाल है। कुशीलिए इनका उपयोग अपना गौरव बढ़ाने, अपनी सुख सुविधा प्राप्त करने, अपने 123
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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