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________________ धर्म का लाभ प्राप्त करने का संतोष मानते हैं, किन्तु दुराचार को प्रोत्साहन देने से उनके पल्ले पाप पड़ता है। आचार्यश्री ने दुराचारियों को आहारादि देना अनुचित बताया, वह सुपात्र दान से धर्म समझकर देने की भावना से अनुचित कहा । श्रावक का घर अतिथि सत्कार वाला ही होता है, अतः उसके घर से किसी को खाली नहीं भेजना । इससे दान देने का निषेध नहीं समझना । ___ आचार्यश्री ने कुसंघ को जहरीले साँप, फूटे हुए अंडे और विष्ठा की उपमा दी । यह निंदा नहीं, किन्तु वास्तविक स्वरूप दर्शन है । उनकी जिनधर्म के प्रति अटूट भक्ति थी । धर्म की विडम्बना और दुर्दशा देखकर उनके मन में खेद हुआ और उपरोक्त शब्दों में उन्होंने अपने उद्गार व्यक्त किये । हड़ियों का ढेर संघसमागमिलिया जे समणा गारवेहिं कज्जाई । साहिज्जेण करंता सो संघाओ न सो संघो ||१२६|| संघ समागम में मिले हुए श्रमण गारव एवं सहाय्य से जो काम करते हैं, वह संघ नहीं किन्तु संघात (ढेर) है ।।१२६।। पूर्वोक्त स्वरूप वाले दुराचारियों के दुराचार में जिस संघ की सहायता हो और जो संघ, ऐसे दुराचारियों को साथ देकर गर्व का अनुभव करता है, वह संघ नहीं, किन्तु हड्डियों का ढेर है- "सेसो पुण अट्ठी संघाओ।" . इससे पूर्व की गाथाओं में आचार्यश्री ने दुराचारियों को 1. दुराचारी के रूप में जो प्रख्यात हो गये हैं। वैसे साधुओं की यहाँ बात समझनी। समाचारी भेद वालों का यहाँ निषेध नहीं किया। 2. इस विषय मै “गुरु तत्त्व विनिश्चय' की १४० आदिश्लोक दृष्टव्य है । 122
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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