SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐसे साधु पिशाचों को वंदना महापाप है एयारिसाण दुस्सीलयाण साहुपिसायाण भत्तिपुव्वं जे । वंदणनमंत्रणाइ कुव्वंति ते महापावा ||११४|| इस प्रकार के कुशीलिए साधु पिशाचों को जो भक्ति पूर्वक वंदना नमस्कार करते हैं, वे महापाप करते हैं ।। ११४ ।। जिस प्रकार पिशाचदेव, क्रूरता पूर्वक लोगों का रक्त मांस चूस लेते हैं, उसी प्रकार ये दुराचारी साधु भी भोले अनभिज्ञ अंधश्रद्धालु उपासकों के माल, उनकी वंदना, नमस्कार, भक्ति और बहुमान प्राप्त करते हैं । उनकी अंधभक्ति का अनुचित लाभ उठाकर अपने असंयम का पोषण करते हैं । कुछ साधुवेशी पिशाच तो ऐसे भी हैं कि जिन्हें पुरुषों या बड़ी-बूढ़ी महिला की अनुपस्थिति में घर में आने देने में भी खतरा है ।1 वे मस्तक मुण्ड साधुवेश की कुछ भी लाज नहीं रखते । कई मायावी, गाँवों और नगरों में झगड़े खड़े करवा कर कलह की होली जला देते हैं । जहाँ वे यह देखते हैं कि बिना लड़ाये अपना उल्लू सीधा नहीं होता, वहाँ भोले भोंदुओं, पक्ष पुजारियों और स्वार्थियों को अपने प्यादे बनाकर बाग में आग लगा देते हैं । इस प्रकार के मायावी वेशधारी को वंदना नमस्कार करना, भक्ति प्रदान करना - महापाप है । इससे असाधु को साधु मानने का मिथ्यात्व, उनके असंयम रूपी अधर्म को धर्म मानने का मिथ्यात्व, शुद्धाचारी श्रमणों के समान आदर देकर उन शुद्धाचारियों 1. कईयों ने घर में जाकर अनाचार कर लिया है । 109
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy