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________________ भयंकर संकटों को झेलने में तत्पर रहते हैं । धर्म पर मर मिटने के लिए सत्त्व-सम्पन्न व्यक्ति बहुत हो गये हैं । आगमों में ऐसे महात्माओं और महासतियों के चरित्र बहुत उपलब्ध हैं । महात्मा धर्मरुचि, गजसुकुमार, अर्जुन, मेतार्य, खंदक, खंदक के ५०० शिष्य, श्रावकवर कामदेव जी, अरहन्नकजी, सती शीलवती सन्नारियाँ, शील रक्षार्थ जौहर करने वाली चित्तौड़ की रानियाँ, ठकुरानियाँ और सेविकाएं, जसमा आदि अनेक महिलाएं, स्वाधीनता के लिए साहसपूर्वक मृत्यु के मुंह में जाने वाले क्रांतिकारियों ने अपने ध्येय के आगे शरीर को कुछ भी नहीं समझा । उन्हें अतिवादी, एकांतवादी, हठवादी एवं अपरिणामी कहने वाले और ढिलाइ-प्रियता के कारण जैन-धर्म को ही मध्यम मार्ग बताने वाले को यथार्थदृष्टा, सत्यवक्ता एवं सन्मार्ग प्रचारक कैसे माने ? आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी वैसे ढीलेढाले, कायर और पार्श्वस्थ मनोवृत्ति वाले से कहते हैं कि-"शरीर रहे चाहे जाय, परंतु व्रत का लोप करके पासत्थे की संगति या कुशीलियापन अपनाना उचित नहीं है ।" कुशीलियापन तो बुरा है ही, किन्तु इससे भी हजारों गुना बुरा है, इस बुरे को अच्छा एवं उपादेय मनाना और इससे भी लाखों करोड़ों गुना बुरा है, इसे प्रचार द्वारा लोगों के गले उतारकर उनकी श्रद्धान बिगाड़ना । उनके हृदय से सम्यग्दर्शन और ज्ञान रूपी अमृत निकालकर मिथ्यात्व का विष भरना । अरिहंत भगवान् के उत्तमोत्तम धर्म-निग्रंथ प्रवचन-मोक्षमार्ग के प्रति गद्दारी करना मामूली पाप नहीं है । 1. अपवाद मार्ग गीतार्थों के लिए है ही। 108
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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