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________________ निवेदन श्री नेमिचंद बाठिया का निवेदन कुछ सुधारकर दिया है। धर्म का उद्गम स्थान वीतराग सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर भगवान् हैं, उन्होंने आत्मा के आध्यात्मिक उत्थान का सबसे पहला चरण सम्यग्दर्शन बतलाया है। सम्यग्दर्शन का अर्थ- आत्मोत्थान विषयक यथार्थ दृष्टि - सम्यग्दृष्टि, तत्त्व विषयक वास्तविक विश्वास अथवा ध्येय शुद्धि । किसी भी कार्य में प्रवृत्त होने वाले की सफलता का मूलाधार ही यथार्थ दृष्टि होती है, दृष्टि विकार के चलते कार्य सिद्धि नहीं हो सकती । जन्म, जरा, रोग, शोक आदि दुःखों से सर्वथा छूटकर शाश्वत परम सुख की प्राप्ति का नाम मोक्ष है, उस मोक्ष प्राप्ति के उपाय रूप तत्त्वों की सत्य समझ ही सम्यग्दर्शन है। हाँ तो सम्यग्दर्शन मोक्षमार्ग का पहला चरण है। उस मोक्षमार्ग के प्रथम चरण को प्राप्त कर स्थिर बनाये रखने के लिए पहली शर्त है कि साधक तीर्थंकर भगवन्त की सर्वज्ञता पर विश्वास करे एवं उनके द्वारा प्ररूपित जीवादि नवतत्त्व, देव, गुरु, धर्म आदि के स्वरूप को समझकर श्रद्धा के साथ उन्हें स्वीकार करें। देव, गुरु धर्म के विषय में आवश्यक सूत्र में इस प्रकार का पाठ है, जिसे संथारा पोरिसी पढ़ते समय बोला जाता है। अरिहंतो मह - देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिणपण्णत्तं तत्तं, इअ सम्मत्तं मए गहियं ॥ इस पाठ से सम्यक्त्व ग्रहण करने वाला साधक प्रतिज्ञा करता है कि 'अरिहन्त भगवन्त ही मेरे देव होंगे, सुसाधु ही मेरे गुरु होंगे और जिनेश्वर प्रणीत तत्त्व ही मेरा धर्म होगा। यह सम्यक्त्व मैं जीवनपर्यन्त के लिए ग्रहण करता हूँ।' इस प्रकार अन्तर हृदय की अभिव्यक्ति ही सम्यक्त्व है। ऐसे निर्दोष पवित्र सम्यक्त्व के पाठ में सम्यक्त्व दिलाने वाले कितनेक (अ) साधु गुरु अपना नाम घुसेड़ कर उसे दूषित ही नहीं अपितु
SR No.022221
Book TitleVandaniya Avandaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Jayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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