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________________ ( ८१ ) आहारना अपचाथी ज थाय छे, एटले शरीरमां कांड जंतुचोए पहेलाथी घर कर्यु नथी होतुं. हवे रही भूखे मरवानी दलील. श्रनुं समाधान उपर करी गया छीए. ज्यां भावथी तप कर वानो होय त्यां भूखे मरवानुं कोण कही शके ? ए तो जबर - जस्तीथी अगर कांइ लालसाथी आहार छोडवानो होय त्यां ज दलील टकी शके. 66 " उपवास आथी सिद्धथयुं के आत्मार्थीए तप अवश्य करवो जोइए. अतएव साधु क्रमे क्रमे देहनो मोह अल्प करवा महाकष्टकारी एवा छट्ट (बे उपवासो), अम ( त्रण उपवासो) आदि विविध बाह्य तप करवा घटे. अहीं जैन शास्त्रनी मर्यादा प्रमाणे प्रथम एक वखत भोजन करी बीजा दिवसे अन्न, जल, स्वादिष्ट वस्तुनो ने मिठाइ दिनो अथवा जल सिवाय सर्वनो सर्वथा त्याग करवो अने बीजा दिवसे एक बखत मात्र भोजन करं. यावा त्यागने चतुर्थभक्त उपवास एवी संज्ञा शास्त्रोमां कही छे, तो पण सूर्योदयथी बीजा सूर्योदय पर्यंत उपरोक्त भोजनादि वस्तुनो त्याग करवो तेने उपवास कह्यो छे. अत्र वाटलं तो उपवास करनारे ध्यान राखतुं के पहेला दिवसे संध्या समये जल विगेरे छोडी देवा, एवं त्रीजा दिवसे सूर्योदय बाद श्रोछामां श्रोछी ४८ मीनीट पर्यंत कांइ पण मुखमां न नांखकुं अर्थात् नवकारसी करवी एटले या उपवास उचित गणाय साधुए ६ .
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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