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(५०) परिग्रह ए पांच मुख्यतया कर्मबंधना कारणो कह्या छे तथा अहिंसा, जूठनिवृत्ति, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रहत्याग ए पांच मुख्यतः कर्मनाशना कारणो कह्या छे.
मूलमा जे आदि शब्द प्राप्यो छे ते प्रत्येकनी साथे जोडवानो होवाथी"हिंसादि-अहिंसादि" ए रीते वाक्यंपयोग करवो एटले-मिथ्यात्व, अविरैति, प्रमाद, काय, योगे आदि शब्दप्राप्त ए पांच कारणो कर्मबंधना जाणवा. तत्वार्थमां उमास्वातिवाचक पण एज जणावे के-मिथ्यात्वाविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतवः" ( त० अ०८-सू०१) 'अहिंसादि' अत्रस्थ आदि शब्दथी उपर कहेल हिंसादिथी विपरीत एवा अहिंसा विगेरे पांच साधनो कर्मवियोगना कारणो जाणवा. मथितार्थ एटलो ज के मिथ्यात्वादि कारणोथी प्रात्मा कर्मबंध करे छे, अने तेना त्यागथी अर्थात् सम्क्यत्व आदि कारणथी आत्मा कर्मविमुक्त बने छे, कारण के-मिथ्याव विगेरे भावो आत्माने असन् मति पेदा करी, दुष्ट मार्गमा दोरी जइ कर्मबंध करावे छे, ने सम्यक्त्व आदि भावो आत्माने सन्मति-सत् श्रद्धा उपजावी मोक्षपंथमां प्रेरी कर्मविमुक्त करे छे, ए भाव ग्रंथकारना वाक्यमां रह्यो छे. एवं प्रकारे आत्मा आदि पदार्थनु स्वरूपदर्शन जे शास्त्रमा कडं होय, पछी ते शास्त्र गमे ते पुरुषकथित होय, तत्शास्त्रोक्त वाक्यो जरुर ग्रहण योग्य जाणवा. आई प्रवचन प्रथम प्रकारनी कसोटीथी शुद्ध जाण. निदान के-ए रीते प्रमाण अने युक्तिथी अखंड्य जाणवं.