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________________ ( ३८१) वचनानुष्ठान ए पदनी पूर्वोक्त व्याख्या प्रमाणे जेओ शास्त्राज्ञा प्रमाणे वर्तन करे, प्रत्येक क्रियामां शास्त्रनुं ज जेओ अवलंबन करे, परमात्मपणुं प्राप्त करवा वारंवार अभ्यास करे, परमात्माना प्रत्येक गुणोनुं स्मरण करी तेनुं ध्यान करे, एवा निर्मल आत्मामां ज आ परमात्मभावनी स्थापना थइ शके. वधुमां ए ज आत्मा परमात्मस्वरूपनी साथे तन्मयता करी शके छे, एटले के-जेम विदग्ध कामी यूवक कोइ लावण्यसौभाग्य रूपकलासंपन्न ललनामां आसक्त थया पछी तेनो ज अहर्निश विचार करे छे, तेने स्वहस्तगत करवा संयोगो खोळे छे, तेमां विविध गुणो स्वदृष्टिए निहाळे छे अने तेथी ते विलासी पुरुषना हृदयमां, चक्षुमां, छायामां, शब्दमां ते ज ललनानी मूर्ति आळेखाय छे, निद्रा के तंद्रा, स्वप्न के जागृतावस्थामां तेने ज देखे छे. अहीं आ कामी आ स्थितिना लीधे कांइ पुरुष मटी स्त्रीरूप बनतो नथी, तेमज स्त्रीना गुणोनो यथावत् अनुभव के वेदन ते करतो नथी; तथापि तेना रागथी तन्मयतानो तो जरुर ते अनुभव करे छे अने आ अनुभवना परिणामे कामी स्वहृदयमां ते ललनानी मूर्त्तिनुं अपूर्व स्वरूप खड़े करी रातदिन तेनी प्राप्तिनी लालसाथी झूर्या करे छे. आ वातनो अनुभव पाठकोने समजाववा माटे अमारे वधारे प्रयास करवानी आवश्यक्ता नथी. ए ज रीते वचनानुष्ठान प्रमाणे वर्तनार परमात्मभावनुं अपूर्व ध्यान, तेनी तन्मयता अने परमात्माना एकाद
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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