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________________ (३७५) "क्षेत्रप्रतिष्ठा" ___ स्पष्टीकरण-क्षेत्रप्रतिष्ठा-आदिनाथ विगेरे चोवीश जिनेश्वरोनी मूर्तिओ पधराववी ते. आ प्रतिष्ठाने शास्त्रकर्ता मध्यम प्रतिष्ठा कहे छे. अहीं ग्रंथकार "ऋषभाद्यानां तु" ए पदथी रुषभदेव विगेरे कोइ पण जिनेश्वरनी अने “ तथा सर्वेषामेव" चोवीशेनी प्रतिष्ठा करवी तेनुं नाम मध्यम प्रतिष्ठा कहे छे. टीकाकार "ऋषभाद्यानां सर्वेषां" ए बन्ने पदोनो विशेष्य विशेषण भाव दर्शावी रुषभदेव आदि चोवीशे तीर्थंकरोनी प्रतिष्ठाने क्षेत्रप्रतिष्ठा जणावे छे. टीकाकारना आशयथी केवल जे समये अन्य प्रभुनुं शासन वर्ततुं होय ते समये अन्य कोइ जिनेश्वरनी मूर्ति पधरावीए, आ प्रतिष्ठाने कइ प्रतिष्ठामां गणवी ए शंका उपस्थित थाय छे, कारण के जे समये जेनुं शासन होय ते समये तेनी मूर्तिनी स्थापना करवी तेनुं नाम व्यक्तिप्रतिष्ठा कही गया छे. अतएव आ शंकाना निरसन माटे "ऋषभाद्यानां" अने "सर्वेषामेव" ए पदोने स्वतंत्र राखी अर्थ करीए तो बराबर सुघटित थाय. आज आशयने हृदयमा धारी मूलकर्ताए “तु अने तथा" पदो आप्या होय एवं अनुमान आपणे केम न करीए? आम छतां एक शंका तो अवश्य विचारज्ञोने उपस्थित थशे. आ शंका एज के-ज्यारे आदिनाथ, पार्श्वनाथ, शान्तिनाथ विगेरे एक ज मूर्त्तिनी स्थापना करीए अने तेने क्षेत्रप्रतिष्ठा मानीये, तथा जे समये जे भगवान, शासन होय ते भगवाननी मूर्ति पधरावीए तेनुं नाम व्यक्ति
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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