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________________ ( ३३८ ) जिनप्रतिमा बनाववानी विधि शास्त्रकार दर्शावे छे. जिनबिंबकारणविधिः, काले पूजापुरस्सरं कर्तुः ॥ विभवोचितमूल्याऽर्पण मनघस्य शुभेन भावेन ॥ ७-२ ॥ मूलार्थ - जिनबिंब कराववानी विधि या प्रमाणे छे. बिंब करनारनी सुअवसरे पूजा करवी, एटले तेनो योग्य सत्कार करी, निर्दोष शुद्ध भावथी पोतानी संपत्ति अनुसार महेनतना बदला तरीके मूल्य अर्पण कर. " कारीगर केवो जोइए १ " स्पष्टीकरण - जिनबिंब केवी रीते कारीगर पासे कराव तेनुं विधान श्रमे उपर दर्शावी गया ते ज विधान ग्रंथकर्ता यहीं स्पष्ट करी जगावे छे. ग्रंथकार कहे छे के- जिनबिंब कराववानुं विधान आ प्रमाणे जाणवुं. जे कारीगरे जिनबिंव तैयार कर्यु होय तेनो भोजन, वस्त्र, पुष्प, पत्र आदिथी प्रथम सत्कार करवो अने पछी निर्दोष पवित्र आशयथी पोतानी संपत्ति प्रमाणे तेने धन अर्पण कर. उत्तमोत्तम मूल्य जिनबना लाभ पासे कांड अधिक धaat sea नथी. अहीं 'अघस्य ' ए पद आप्युं छे. आनो परमार्थ ए के
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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