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________________ ( ३३३ ) · हिंसा निवृत्तिना फलने अर्थे छे. आनो परमार्थ ए ले केजिनमंदिर बांधतां ते बांधनार भाविक गृहस्थ अन्य बहु आरंभमय कार्योंनो त्याग करे छे एटले आ जिनमंदिर बांधवारूप द्रव्यहिंसा प्रवृत्तिथी बहु प्रारंभमय कार्यों छूटी जाय छे माटे "यस्मादेषैव तन्निवृत्तिफला" जे माटे आ यतना ज हिंसा निवृत्तिफलजनिका बने छे. शास्त्रोमां पण कहुं छे. " जा जयमाणस्स भवे विराहणा सुत्त विहिसमग्गस्स । सा होइ णिज्जरफला अज्झप्पविसोहिजुत्तस्स ॥ १ ॥ सूत्रदर्शित विधिए करी पूर्ण अने आत्मनिर्मलतायुक्त पुरुष यतना- उपयोग सहित प्रवृत्ति आदरता जो विराधना - हिंसा करे तो ते हिंसा पण ते आत्माने कर्मनिर्जरा फल आपनार थाय, माटे आ द्रव्यहिंसा निवृत्तिफलजनिका कही. आ परथी जेयो जिनमंदिर बांधवामां पृथ्यादि जीवोनो वध धवाथी ते आरंभयुक्त गणाय माटे ते कार्यमां धर्म के संभवे १ आवो जे प्रश्न करे छे तेनो योग्य खुलासो उपरना लेखथी सुष्ठुरीत्या स्पष्ट थइ जाय बे. आटलो स्पष्ट खुलासो कर्या पछी फरी शास्त्रकर्ता - ' विहितमतोऽदुष्टमेतदिति ' ए पदथी आ बात वधारे स्पष्ट करे छे. एक तो पूर्वे कही श्राव्या तेथी जिनमंदिर बांधवामां कांह प्रत्यवाय नथी, बीजुं शास्त्रमां जिनमंदिर बंधाववानी खास आज्ञा आपी छे, जिनेश्वरोए जिनमंदिर बंधाववानो निर्मल उपदेश प्राप्यो छे; माटे पण या जिनमंदिर बंधावनुं सर्वथा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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