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पर विशेष भक्ति जो के भावि प्रजाने थाय छे तो पण अन्य मंदिर पर भक्ति होय तो मिथ्यात्वपणानी प्राप्ति थाय नहीं. एटले के अन्य संघकृतादि मंदिर पर पण अनुराग अवश्य उत्पन्न थवो जोइए; अन्यथा मिथ्यात्वनो दोष लागे.
श्रा सर्व विधिनो उपदेश कर्या पछी वादी शंका करे छे के आ बधू जे कही आव्या ते ठीक, पण मंदिर बंधाववामां पृथ्वी आदि छकाय जीवनो अवश्य नाश थाय छे, ते विना जिनमंदिर बनवू अशक्य छे; माटे कार्यमां तो तमारे खास करीने हिंसा मानवी ज पडशे. आम मान्या पछी शुं हिंसावाळा कार्यथी धर्म बने खरो ? आ प्रश्ननुं समाधान आचार्य अहीं आ प्रमाणे कहे छ:यतनातो न च हिंसा,
यस्मादेषैव तन्निवृत्तिफला ॥ तदधिकनिवृत्तिभावाद्
विहितमतोऽदुष्टमेतदिति ॥ ६-१६ ॥ मूलार्थ-प्रयत्नपूर्वक उपयोगपूर्वक मंदिर बांधवाथी श्रा भावहिंसा लागती नथी.आ हिंसा पण निवृत्तिफल-हिंसारूप निवृत्ति फलवाली कही छे, कारण के अधिक अन्य प्रारंभान्तमा जे हिंसा थाय ते हिंसा मंदिर बांधवामां थती नथी अने अन्य हिंसानो रोध थाय छे तथा शास्त्रमा मंदिर