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________________ (३०३) आगल पर विस्तारथी दर्शावशे. प्राथी अहीं तो द्वाररूप ट्रॅक ज वर्णन कयु अर्थात् केवल कारणोनी संख्या मात्र अहीं दावी छे. जिनसवन बांधवा पहेला भविकोए जिनमत्रान योग्य भूमिनी शुद्धि करवी, तथा काष्ठ, पत्थर आदि पदार्थों शुद्ध निर्दोष लेवा, जिनप्रासाद बांधनार कारीगरो-मजूरोने खुशी राखवा, तेस्रोने कोई प्रकारे ठगवा नहीं अने बंधाकनारे घोतानुं चित्त उदार तथा पवित्र, निर्दोष, उज्वल विचास्मय राखवू, एटलुं ज नहीं पण उत्तरोत्तर अधिक सुंदर चिन राखg. पृथ्वीनी शुद्धि करवानुं जणाव्युं तो केवी रीते शुद्धि करवी १ अने केवी पृथ्वी जिनप्रासाद बांधवाना कार्यमां लेवी १ ते स्पष्ट करे छे. शुद्धा तु वास्तुविद्धा विहितासन्यायतश्च योपात्ता ॥ न परोपतापहेतुश्च, सा जिनेन्द्रैः समाख्याता ॥६-४॥ मूलार्थ-वास्तुशास्त्रनी विद्याथी विहित होय अने शोधन न्यायथी जे पृथ्वी प्राप्त थइ होय तेमज जे पृथ्वी अन्यने क्लेश उपनाकीने लीधी न होय ते ज पृथी जिनेवरोए जिनभक्त माटे योगा कही के.
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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