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________________ (२६९) अने निरोध करवानो प्रखर उत्साह पामवानुं खास जणावे छे, अने पछी कारणसामग्री हस्तगत थवाथी कार्यसिद्धिमा विलंब लागतो नथी ते ज न्यायथी अहीं पण सक्रियारूप कार्यसिद्धि दश संज्ञानो व्यवच्छेद अने व्यवच्छेद करवानो उत्साहरूप कारण-संयोग मलवाथी विनाविलंबे थाय एमां लेश पण शंकाने स्थान नथी. ___ अहीं 'आत्माने तत् तत् वस्तुप्राप्तिनो जे उपयोग ते संज्ञा' एम केटलाक प्राचार्यो संज्ञानो अर्थ जणावे छे, अथवा अष्टकर्म पैकी वेदनीय अने मोहनीय कर्मोदयना प्रभावथी एवं ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय कर्मक्षयोपशमना प्रभावथी आहार विगेरे पदार्थनी इच्छावाळो आत्मा आहार आदि पदार्थो स्वीकारवाने जे प्रयत्न-गति आदि करे तेनुं नाम पण संज्ञा महर्षियो कहे छे. आ अर्थवाली ' संज्ञा' आत्मानी जुदी जुदी अभिलाषाना कारणथी तथा भिन्न भिन्न प्रकारना प्रयत्नभेदथी दश प्रकारनी शास्त्रोमां जणावी छ अर्थात् श्रा दशे प्रकारनी संज्ञाओ अने तेनुं विस्तृत स्वरूप 'स्थानांगसूत्र' 'प्रज्ञापनासूत्र' आदिमां नीचे प्रमाणे जणाव्युं छे. "दस संण्णाओ पं० तं श्राहारसंण्णा, जाव परिग्गहसंण्णा ४, कोहसंण्णा जाव लोभसंण्णा ४, लोगसंण्णा ९ ओहसंण्णा १०, नेरयईयाणां दसं संण्णाओ एवं चेव, एवं निरंतरं जाव वेमाणियाणं (स्था० सू०७५२) " दश संज्ञाओ ा प्रकारे कही छे. श्राहारसंज्ञा १, भयसंज्ञा
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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