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________________ (२६५) नाम आगमवचन." भावार्थ एके-आत्मानुं एकान्त श्रेय करनार अने हितमार्ग देखाडनार जे शास्त्रो होय तेने ज महर्षिो आगमशास्त्र कहे छे, पण जे शास्त्रो छतां" षटू शतानि नियुज्यंते" इत्यादि वचनोथी पशुहोम, अग्निहोत्र आदि पापारंभनो उपदेश करे तेने आगमशास्त्रो केम कहेवाय? अरे शास्त्रो पण केम कही शकाय? अाथी शास्त्रो अने आगम तो ते जगणाय के जेमा लेश पण पापोपदेश न होय. या शास्त्रो सर्वज्ञकथित अने सर्वज्ञवाक्यावलंबी एम बे प्रकारे होय छे. जे वचनो भगवंते कह्या अने गणधरोए सूत्रोपणे रच्या ते सर्वज्ञकथित आगम कहेवाय छे, अने सर्वज्ञना अमुक अमुक वचननो आधार लइ आचार्योए जे शास्त्रो रच्या होय ते सामान्य शास्त्रो कहेवाय छे; परंतु प्रा बन्ने शास्त्रो नितान्ततया शुद्ध सन्मार्ग सिवाय पापोपदेश कदापि करे नहीं. अावा आगमनुं जे वचन होय ते ज आगमवचन अहीं मान्युं छे. आ आगमवचननी परिणति एटले परिणमवू अर्थात् आगममा जे प्रकारे पदार्थस्वरूप कडं होय तेज प्रकारे परिणमq एटले वर्तनमां-क्रियामां मुकर्बु तेनुं ज नाम खरी रीते आगमवचन-परिणति शास्त्रकार कहे के. ज्यां सुधी विभाव पदार्थोनो कंटाळो आत्माने न पावे, आत्मज्ञान स्फुरायमान न थाय, संसार पर अप्रेम न जागे अने सत्य सुख प्रति जिज्ञासा न वधे त्यां सुधी भागमवचन ते आत्माओने कोइ पण गुण करवा समर्थ बनतुं नथी. अने आ स्थिति चरम पुद्गलपरावर्तकालमां आव्या सिवाय पामवी महर्षियोए अशक्य जणावी छे. परमार्थ ए के-अज्ञानावरण
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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