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________________ ( २५३ ) भाव आरोग्यता-समकितनो लाभ प्रात्माने थाय छे. अने समकितनो जे लाभ तेने ज शास्त्रकर्ता लोकोत्तरतत्त्व प्राप्ति कहे छे. एवं प्रधानतर भाव-आरोग्यतानुं मुख्य बीज आ "लोकोत्तर तत्त्व" समकितप्राप्ति सिवाय बीजुं कई नथी. भावार्थ ए के-आदि भाव-आरोग्यता, समकितप्राप्ति अने परम आरोग्यता ते सकलकमैक्षयरूप मोक्ष छे अने मोक्षप्राप्ति समकित सिवाय असाध्य छ. प्राथी समकितने बीजकारणनी गणनामां गण्युं छे तो जेम तीव्र पापविकारोनी शांति पछी आदि भाव-आरोग्यता उपलब्ध थाय तेम संपूर्ण आरोग्यनी प्राप्ति पहेलो राग, द्वेष, मोह अने तेना कारणभूत जन्म-जरा-मरणादिरूप भावरोगोनी सर्वथा शांति-क्षय करवानी परम आवश्यकता छ, अर्थात् आ भावरोगोनी शांति तेनुं नाम निःश्रेयस-मोक्ष कहुं छे. हवे आ प्रादि भाव आरोग्यता-समकितना अधिकार अने तेनी प्राप्तिनो समय उतरार्द्धथी ग्रंथकर्ता दर्शावे छे. जेओनो संसार घणा भागे क्षीण थयो के अने मात्र अन्तिम पुद्गलपरावर्तकाल संसारमा रही मोक्ष पामवाना होय तेश्रो ज पा समकितने निश्चयथी पामी शके, अने अधिक काल जेरो संसारमा रहेवाना होय तेत्रो कदापि आदि भाव-आरोग्यता पामी शके नहीं, एटलुज नहीं पण उपाध्यायजी आगळ वधीने त्यां सुधी पण कहे छे के-सर्व दर्शन संबंधी अपुनबंधक्रिया एटले शान्त, दान्त, जिज्ञासु, मुमुक्षु आदि भावो पाम्या पछी आत्मा अपुनबंधपणाने पामे ते क्रियानो पण अन्त्य पुद्गलपरावर्तकाल सिवाय अन्य पुद्गलपरावर्तकालमां पामी शकाय नहीं, यावत्
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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