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________________ (२४१) एरीते अहीं मध्यम जनोने क्रोध उद्भववाना सद्भूतदोषश्रा १, आरोपितदोष अथवा असद्भूतदोषश्रवण २ अने कार्य तत्त्वनो निर्विचार ३ ए त्रण कारणो दर्शाव्या छ, तेमां बालजीवोने जे जे कारणोथी क्रोध उद्भवे के ते कारणो बहुधा अहीं दर्शित कार्यतत्त्वनो निर्विचार नामनात्रीजा कारणमां अंतर्गत थइ शके छे. उपर दर्शित कारणोथी अने प्रथम दर्शित कोइ पण कारणोथी छअस्थभावने लीधे अथवा वस्तुबोधनी खामीना लीधे क्रोधविकारो जनताने उद्भवे ए साहजिक छे, तथापि क्रोधना उदयने दाबवा माटे अने उद्भव थवा न पामे ते सारु तेमज पश्चात्ताप करवा अर्थे शास्त्रकर्ताए अनेक मार्गों कह्या छे. आ कारणो अमे आगळ उपर पांच प्रकारनी क्षमाना स्वरूप वखते विस्तारथी कह्या छे, ते विवेकीओए खास विचारक अने तेनुं अनुकरण करवाने दत्तचित्त थर्बु ए वधारे उचित छे. एरीते विषयतृष्णा १, दृष्टिमोह २, धर्मपथ्यमां अरुचि ३ अने क्रोधकंडूति ४ ए चार पापविकारोनुं विस्तृत स्वरूप कही धर्मी अात्मामां आ विकारो न होय एम व्यतिरेक मुखथी तेनो प्रभाव जणान्यो. हवे अहीं उपसंहार कस्तां तेज वातनो निर्देश करी फरी धर्मतत्त्व पाम्या पछी धर्मनी उच्च भूमिकाए आरूढ थयेला आत्माओने धर्मतत्त्वना प्रभावथी विशिष्ट १६
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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