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________________ (२१२) श्री "निर्मलबोध' श्रुतसार १, चिन्तासार २ अने भावनासार ३ एम प्रण प्रकारनो होय छे. " स्पष्टीकरण" 'निर्मलबोध' एटले विमलबोध अर्थात् जे ज्ञानमां अज्ञाननो-विकारभावनो मल न होय, कारण के बोध वे प्रकारनो होय छेः एक तो व्यवहारिक तस्वनो अने बीजो धार्मिक तत्वनो.व्यवहारिक तत्त्वनोबोध केवल उपाधि वधारनार अने समारंभादि वधारनार होवाथी शास्त्रकर्ताए तेने अशुद्ध बोध कह्यो छे. धार्मिक तत्त्वनो बोध पण बे प्रकारनो कयो छे. जेमां राग, द्वेष के अज्ञानताथी आग्रहविशिष्ट पुरुषोना वाक्यो होय एवा शास्त्रो श्रवण के अभ्यास करवाथी जे बोध उदमवे ते, अने वीतरागकथित केवल त्याग-वैराग्य प्रशमरसने ज पोषनारा शास्त्रो श्रवण तथा अभ्यास करवाथी जे ज्ञान उद्भवे ते. आ बे प्रकारना बोधमां प्रथमनो बोध प्रात्माने खोटा मार्ग पर लइ जनार होवाथी सर्वथा उपेक्षा योग्य छे, तथा बीजा बोधमां पण वीतरागना नामे क्लेशादि उत्पन्न करनारा तथा आग्रही पुरुषोना कहेला जे जे वचनो होय ते पण उपेक्षाने ज पात्र छे. या हेतुथी ज ग्रंथकर्ताए मूलमां सामान्य · बोध ' ए पद न मूकता “निर्मलबोध" ए विशिष्ट पद मूक्युं छे अने टीकाकारे तेनी व्याख्या ' विमलबोध' एवी करी छे. भावार्थ ए के-'विगतः मलः यस्मात् स
SR No.022219
Book TitleShodashak Granth Vivaran
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherKeshavlal Jain
Publication Year
Total Pages430
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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